बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में स्थित केसरिया विधानसभा सीट ने राजनीति के कई रंग देखे हैं। 1952 में अस्तित्व में आई इस सीट पर कभी सीपीआई का दबदबा हुआ करता था, लेकिन अब जदयू का कब्जा है। 2020 में जदयू की शालिनी मिश्रा ने यह सीट जीती, जबकि राजद और लोजपा पिछड़ गए।
इतिहास: वामपंथ से लेकर NDA तक का लंबा सफर
केसरिया की राजनीति का आरंभ सीपीआई के पीतांबर सिंह और यमुना यादव से हुआ, जिन्होंने कई बार इस सीट पर जीत दर्ज की।
1995 तक सीपीआई का प्रभाव कायम था, लेकिन उसके बाद कांग्रेस, राजद, भाजपा और जदयू ने बारी-बारी से यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
- सीपीआई: 6 बार
- कांग्रेस: 5 बार
- राजद: 2 बार
- भाजपा, जदयू, समता पार्टी, जनता पार्टी: 1-1 बार
2008 के परिसीमन के बाद यहां के क्षेत्रों में बदलाव हुआ, जिससे जातीय समीकरण और वोटिंग पैटर्न में भी अंतर आया।
2020 का चुनाव: महिला नेतृत्व की जीत
2020 में जदयू की शालिनी मिश्रा ने 26.59% वोट प्राप्त कर जीत दर्ज की। दूसरे स्थान पर लोजपा के राम शरण यादव रहे, जिन्हें 12.5% वोट मिला। राजद पिछड़कर तीसरे स्थान पर रहा। इस चुनाव में 56.5% मतदान दर्ज हुआ, जिसमें महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही।
2015: आरजेडी की वापसी
2015 में राजद के राजेश कुमार ने भाजपा को 16 हजार वोटों से हराया। उन्हें 47.55% वोट मिला, जबकि भाजपा के राजेंद्र गुप्ता को 35.49% वोट प्राप्त हुआ। यह चुनाव एमवाई समीकरण के कारण राजद के पक्ष में गया।
2010: भाजपा ने पहली बार दिखाया दम
भाजपा के सचिन्द्र प्रसाद सिंह ने 2010 में पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी। उन्हें 36.67% वोट मिला, जबकि सीपीआई के राम शरण प्रसाद 24.31% वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे।
जातीय समीकरण: एमवाई फैक्टर का असर
केसरिया सीट पर मुस्लिम और यादव मतदाता बड़ी संख्या में हैं, जिससे यहां आरजेडी की स्थिति पारंपरिक रूप से मजबूत रही है। इसके अलावा कोइरी, ब्राह्मण और राजपूत वोटर भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पिछले चुनाव में 12% ज्यादा रहा, जो किसी भी दल के लिए गेमचेंजर बन सकता है।
जनसंख्या और मतदाता विश्लेषण
- एससी मतदाता: 30,522 (11.4%)
- एसटी मतदाता: 937 (0.35%)
- मुस्लिम मतदाता: 37,215 (13.9%)
- ग्रामीण मतदाता: 2,54,373 (95.01%)
- शहरी मतदाता: 13,360 (4.99%)
केसरिया विधानसभा सीट अब वामपंथ के अतीत से निकलकर एनडीए और महागठबंधन की जंग का केंद्र बन चुकी है। 2025 में जातीय समीकरण, महिला वोट और संगठनात्मक शक्ति जिस पार्टी के पक्ष में जाएंगे, उसकी जीत तय मानी जाएगी।