पटना – बिहार सरकार एक बार फिर जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र निर्माण की जिम्मेदारी पंचायत स्तर पर लौटाने की तैयारी में है। 2023 में भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े को रोकने के उद्देश्य से यह काम प्रखंड सांख्यिकी पदाधिकारियों को सौंपा गया था, लेकिन अब इस पर सरकार पलटी मारती दिख रही है। इस फैसले के पीछे बिहार प्रदेश मुखिया महासंघ का दबाव बताया जा रहा है। महासंघ ने 14 सूत्री मांगों का एक ज्ञापन राज्य सरकार को सौंपा, जिसमें प्रमाण पत्रों के निर्माण का अधिकार पंचायतों को लौटाने की मांग भी शामिल है। महासंघ ने दावा किया है कि मुख्य सचिव से सहमति मिल चुकी है और प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है।
2023 से पहले तक पंचायत कार्यालयों में जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र बनते थे, लेकिन गड़बड़ी, फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार की शिकायतों के बाद सरकार ने इसे प्रखंड स्तर पर केंद्रीकृत कर दिया। उस समय यह कहा गया था कि स्थानीय स्तर पर कई प्रमाण पत्र फर्जी तरीके से बनाए जा रहे हैं, जिससे घुसपैठियों को भारत की नागरिकता हासिल करने में मदद मिली। चुनावी मौसम के बीच इस फैसले पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वह पंचायत प्रतिनिधियों को खुश करने के लिए यह निर्णय ले रही है। कुछ नेताओं ने आशंका जताई है कि फर्जी जन्म प्रमाण पत्रों के जरिये वोट बैंक तैयार करने की कोशिश की जा रही है।
बिहार में लंबे समय से बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा गरमाया रहा है। बीजेपी और अन्य दलों का आरोप है कि सीमा पार से आए लोग पंचायत स्तर पर फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर भारतीय नागरिक बन रहे हैं। झारखंड और दिल्ली चुनावों में भी फर्जी प्रमाण पत्र और वोटर आईडी का मुद्दा सामने आया था। अब जब बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, तो इस फैसले को राजनीतिक लाभ से जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसे में यह निर्णय प्रशासनिक पारदर्शिता और सुरक्षा की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण बन सकता है।
जहां एक ओर पंचायत स्तर पर प्रमाण पत्र बनवाना ग्रामीण जनता के लिए सुलभ और सस्ता विकल्प माना जाता है, वहीं दूसरी ओर इससे सुरक्षा और फर्जीवाड़े का खतरा भी बढ़ता है। सरकार पर अब यह दबाव है कि वह संतुलन बनाकर चले—पारदर्शिता, सुविधा और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले।