नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सऊदी अरब यात्रा के दौरान सीरियाई नेता अहमद अल-शरा से मुलाकात ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हंगामा खड़ा कर दिया है। अल-शरा, अमेरिका द्वारा आतंकवादी घोषित संगठन हयात तहरी अल-शाम (HTS) के प्रमुख हैं, और उनकी ट्रंप से मुलाकात को लेकर अमेरिका की आतंकवाद विरोधी नीति पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। यह मुलाकात सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की मौजूदगी में हुई, और माना जा रहा है कि यह सऊदी अरब के दबाव और व्यापारिक हितों का नतीजा है।
ट्रंप ने अपनी मध्य पूर्व यात्रा के दौरान मंगलवार को एक निवेश फोरम में घोषणा की थी कि अमेरिका सीरिया पर लगे सभी प्रतिबंध हटा रहा है। इसके एक दिन बाद बुधवार सुबह उन्होंने अल-शरा से मुलाकात की। अल-शरा पर अमेरिका ने 1 करोड़ डॉलर का इनाम रखा है, और वह सीरिया में बशर अल-असद के शासन को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाने वाले HTS के नेता हैं। HTS को कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने आतंकवादी संगठन घोषित किया है, और इसे अल-कायदा की सीरियाई शाखा के रूप में भी जाना जाता रहा है।
अल-शरा का विवादित इतिहास
अहमद अल-शरा, जिन्हें पहले अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से जाना जाता था, ने हाल ही में सीरिया की सत्ता संभालने के बाद खुद को उदारवादी नेता के रूप में पेश करना शुरू किया है। वह पश्चिमी शैली के सूट पहनते हैं और सीरिया के विकास के लिए पश्चिमी प्रतिबंध हटाने की वकालत करते हैं। हालांकि, उनका इतिहास चरमपंथ से भरा हुआ है। अल-शरा न केवल HTS के नेता हैं, बल्कि वह अल-कायदा से भी जुड़े रहे हैं। उन पर इराक में आतंकी गतिविधियों और सीरिया में युद्ध अपराधों व मानवाधिकार हनन के आरोप हैं।
ट्रंप की नीति पर सवाल
ट्रंप की इस मुलाकात को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। पिछले 25 सालों में यह पहली बार है जब अमेरिका और सीरिया के शीर्ष नेताओं ने एक-दूसरे से मुलाकात की है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अमेरिका की आतंकवाद विरोधी नीति के विपरीत है। एक ओर जहां अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर मध्य पूर्व में कई सैन्य अभियान चलाए, वहीं ट्रंप का एक ऐसे नेता से मिलना, जिसे अमेरिका ने आतंकवादी घोषित किया है, विरोधाभास को दर्शाता है।
सऊदी अरब और कतर जैसे बड़े सुन्नी देशों का अल-शरा को समर्थन प्राप्त है। ट्रंप की इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य मध्य पूर्व से अमेरिका में बड़े निवेश को आकर्षित करना है। रियाद में आयोजित GCC-US समिट में सऊदी अरब ने अमेरिका के साथ 142 अरब डॉलर के रक्षा समझौते सहित कई बड़े सौदों पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा, सऊदी अरब ने अमेरिका में 600 अरब डॉलर के निवेश का वादा भी किया है। माना जा रहा है कि इन व्यापारिक हितों के चलते ट्रंप ने सऊदी प्रिंस के दबाव में आकर अल-शरा से मुलाकात की।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस मुलाकात को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ देशों ने इसे मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता की दिशा में एक कदम माना है, वहीं कई पश्चिमी देशों और संगठनों ने इसकी आलोचना की है। संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, HTS और अल-कायदा के बीच अभी भी कुछ संपर्क बने हुए हैं, जिसके चलते अल-शरा पर भरोसा करना जोखिम भरा हो सकता है।
क्या है ट्रंप का मकसद?
ट्रंप ने समिट के दौरान खाड़ी देशों की प्रशंसा करते हुए इसे “स्थिर, शांतिपूर्ण और समृद्ध मध्य पूर्व” बनाने का श्रेय दिया। उन्होंने अल-शरा से मुलाकात के दौरान सीरिया और इज़रायल के बीच संबंध सामान्य करने की बात भी उठाई। हालांकि, कई विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम आर्थिक हितों से प्रेरित है, न कि क्षेत्रीय शांति से।इस मुलाकात ने एक बार फिर ट्रंप की विदेश नीति को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि क्या व्यापारिक हितों के लिए अमेरिका अपनी लंबे समय से चली आ रही आतंकवाद विरोधी नीति को दरकिनार कर देगा? आने वाले दिनों में इस मुलाकात के दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं।