बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने संगठन के अंदर बड़ी राजनीतिक सर्जरी शुरू कर दी है। पार्टी के तीन आंतरिक सर्वे में 22 विधायकों के टिकट काटने की सिफारिश की गई है। इन विधायकों पर क्षेत्रीय उपस्थिति, कामकाज की समीक्षा, जनता से संवाद और विकास कार्यों की नाकामी जैसे कई आधारों पर रिपोर्ट तैयार की गई है।
BJP का नया लक्ष्य: 225 सीटें और टॉप स्ट्राइक रेट
साल 2010 की तरह इस बार भी बीजेपी 90% स्ट्राइक रेट हासिल करने की रणनीति पर काम कर रही है। 2010 में बीजेपी ने 101 में से 91 सीटें जीती थीं। इस बार एनडीए गठबंधन ने 243 में से 225 सीटों का लक्ष्य रखा है। पर इस टारगेट तक पहुंचने के लिए पार्टी को “Zero Tolerance on Non-performers” की नीति अपनानी पड़ी है।
तीन लेयर सर्वे में खुले विधायक कार्यशैली के राज
इन सर्वे में विधायकों से संबंधित कई पहलुओं को जांचा गया कि क्षेत्र में उपस्थिति कितनी रही? जनता से जवाबदेही का स्तर क्या रहा? विकास कार्यों की संख्या और गुणवत्ता कैसी रही? क्या विधायक जनता के बीच मोदी लहर पर निर्भर होकर निष्क्रिय रहे? परिणाम ये निकला कि, 22 विधायक पार्टी के मानकों पर फेल हुए। इनमें वो विधायक भी हैं जिन्होंने पहले नीतीश कुमार के फ्लोर टेस्ट में पार्टी लाइन के खिलाफ जाने की कोशिश की थी।
BJP के लिए क्यों जरूरी है टिकट कटौती?
दरअसल, 2020 के चुनाव में बीजेपी ने सीमित सफलता पाई थी। पार्टी मानती है कि जीत के लिए सिर्फ मोदी लहर पर निर्भर रहना अब पर्याप्त नहीं है। पार्टी अब “Performer vs. Pretender” को स्पष्ट कर मैदान में उतरेगी। सोशल मीडिया स्टार लेकिन जमीनी काम से गायब विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।