वाशिंगटन : अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाले प्रशासन के एक हालिया फैसले ने देशभर में तीखी बहस छेड़ दी है। ट्रंप प्रशासन ने उस महत्वपूर्ण दिशानिर्देश को रद्द कर दिया है, जो अस्पतालों को आपातकालीन स्थिति में गर्भपात की अनुमति देता था। यह दिशानिर्देश 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार ने लागू किया था, ताकि गंभीर चिकित्सकीय आपात स्थिति में गर्भवती महिलाओं की जान बचाने के लिए गर्भपात किया जा सके। ट्रंप प्रशासन के इस कदम के बाद गर्भपात अधिकार समर्थकों ने कड़ा विरोध जताया है और इसे महिलाओं के जीवन के लिए खतरा बताया है।
‘ट्रंप प्रशासन महिलाओं की जान से कर रहा खिलवाड़’
‘सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स’ की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी नैन्सी नॉर्थअप ने ट्रंप प्रशासन पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा, “ट्रंप प्रशासन चाहता है कि महिलाएं जीवनरक्षक गर्भपात कराने के बजाय आपातकालीन कक्षों में मर जाएं।” नॉर्थअप ने चेतावनी दी कि इस नीति को हटाने से उन राज्यों में गंभीर संकट पैदा होगा, जहां गर्भपात पर सख्त प्रतिबंध लागू हैं, जैसे कि इडाहो और टेक्सास, जहां पहले से ही मातृ मृत्यु दर अधिक है।
2022 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ‘रो बनाम वेड’ फैसले को पलटकर राष्ट्रीय स्तर पर गर्भपात के अधिकार को खत्म कर दिया था। इसके बाद बाइडेन प्रशासन ने आपातकालीन चिकित्सा उपचार और श्रम अधिनियम (EMTALA) के तहत यह दिशानिर्देश जारी किया था। इसके तहत अस्पतालों को यह सुनिश्चित करना अनिवार्य था कि मेडिकल इमरजेंसी में गर्भवती महिलाओं को स्थिर करने के लिए गर्भपात सहित जरूरी इलाज मिले, भले ही वह राज्य गर्भपात पर प्रतिबंध लगाए हो। ट्रंप प्रशासन ने मंगलवार (03 जून 2025) को इस नीति को रद्द करने की घोषणा की, जिसे कई लोगों ने प्रजनन अधिकारों पर एक बड़ा हमला बताया है।
कई चिकित्सकों और गर्भपात अधिकार समर्थकों ने इस फैसले पर गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि इस नीति के हटने से उन राज्यों में मातृ मृत्यु दर में और वृद्धि हो सकती है, जहां गर्भपात पर पहले से ही सख्त कानून हैं। कॉमनवेल्थ फंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में गर्भपात-प्रतिबंध वाले राज्यों में मातृ मृत्यु दर गर्भपात-सुलभ राज्यों की तुलना में 62% अधिक थी (28.8 बनाम 17.8 प्रति 100,000 जन्म)। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला खासकर रंगभेद वाली महिलाओं के लिए और घातक साबित हो सकता है, जिन्हें पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता का सामना करना पड़ता है।
दूसरी ओर, गर्भपात विरोधी संगठनों ने ट्रंप प्रशासन के इस कदम का स्वागत किया है। एसबीए प्रो लाइफ अमेरिका की अध्यक्ष मर्जोरी डैनेनफेलसर ने कहा, “बाइडेन प्रशासन इस कानून का दुरुपयोग उन राज्यों में गर्भपात को बढ़ावा देने के लिए कर रहा था, जहां यह प्रतिबंधित है। ट्रंप प्रशासन का यह फैसला जीवन की रक्षा की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।”
यह फैसला वैश्विक स्तर पर प्रजनन अधिकारों को लेकर चल रही बहस का हिस्सा बन गया है। ट्रंप प्रशासन की यह नीति प्रोजेक्ट 2025 जैसे रूढ़िवादी एजेंडों से प्रेरित मानी जा रही है, जो गर्भपात, जन्म नियंत्रण और आईवीएफ जैसे प्रजनन अधिकारों को सीमित करने की योजना है। अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) ने इस कदम की कड़ी निंदा की है और कहा है कि वे हर संभव कानूनी कदम उठाएंगे ताकि गर्भवती महिलाओं को आपातकालीन स्थिति में जीवनरक्षक देखभाल मिल सके।
अमेरिका में गर्भपात को लेकर पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति है। टेक्सास और इडाहो जैसे राज्यों ने बाइडेन प्रशासन के दिशानिर्देश के खिलाफ मुकदमे दायर किए थे, जिसमें दावा किया गया था कि उनके राज्य के गर्भपात प्रतिबंध संघीय कानून से ऊपर हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन का यह फैसला गर्भपात विरोधी संगठनों को और मजबूत करेगा, लेकिन यह उन महिलाओं के लिए बड़ा खतरा पैदा करेगा, जिन्हें आपातकालीन चिकित्सा देखभाल की जरूरत है।
गर्भपात अधिकार समर्थक संगठन इस फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। ACLU की डिप्टी डायरेक्टर एलेक्सा कोल्बी-मोलिनास ने कहा, “ट्रंप प्रशासन चार दशकों से चले आ रहे उस कानून को एक झटके में मिटा नहीं सकता, जो मरीजों की जान बचाता है।” इस बीच, यह मुद्दा अमेरिका में एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बन गया है, और आने वाले दिनों में इसके व्यापक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।