ट्रेन की छतों पर बैठकर, जनरल बोगियों में पसीने से लथपथ, महीनों की कमाई की पोटली लिए — वो लोग जो सालभर देश के कोनों में खटते हैं, छठ पूजा पर हर हाल में अपने गांव लौटते हैं। टिकट मिले या न मिले, जगह मिले या नहीं — छठ पर गांव लौटना तो जैसे धर्म बन चुका है।लेकिन इस बार की छठ सिर्फ एक पर्व नहीं, एक ऐलान है। एक निर्णायक मोड़। जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने बिहार के सारण में एक ऐसी बात कह दी है जो उन लाखों परिवारों की उम्मीदें जगा रही है जो हर साल अपनों से दूर रहकर पेट पालते हैं।
प्रशांत किशोर ने कहा कि ये आखिरी छठ हो सकती है जब बिहारियों को घर लौटना पड़ेगा, क्योंकि इसके बाद उन्हें घर छोड़ना नहीं पड़ेगा। PK ने अपने भाषण में सिर्फ आंकड़े नहीं उगले, दिल की बात कही — और इस बार उनका लहजा सिर्फ चुनावी नहीं, निजी था। उन्होंने जनता से कहा कि “अब लालू जी के बेटों को देखकर वोट मत दीजिए, अब मोदी-नीतीश के वादों पर मत जाइए। इस बार अपने बच्चों का चेहरा देखिए… क्या आप उन्हें भी मजदूरी के लिए मुंबई भेजेंगे?” तालियां नहीं, आंखें नम थीं। क्योंकि वहां मौजूद हर आदमी ने वो पीड़ा झेली है जिसे PK ने शब्द दिए।
PK ने कहा कि अगर जनसुराज की सरकार बनी, तो बिहार का कोई नौजवान दूसरे राज्य में मजदूरी करने नहीं जाएगा। उन्हें घर पर ही रोजगार मिलेगा — और ये सपना नहीं, योजना है। जब बिहार का दिमाग देश चला सकता है, तो बिहार अपने लोगों को क्यों नहीं पाल सकता?
सरकारी स्कूलों की बदहाल हालत को उजागर करते हुए PK बोले कि बच्चे स्कूल सिर्फ खिचड़ी खाने जाते हैं। पढ़ाई नहीं होती। PK ने वादा किया कि गरीब परिवारों के बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ सकेंगे और सरकार उनकी फीस भरेगी। यह घोषणा शिक्षा क्षेत्र में एक नई सोच को दर्शाती है, जो सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर से नहीं, गुणवत्ता और समानता से जुड़ी है।
PK ने सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए घोषणा की। उन्होंने कहा कि 60 साल से ऊपर की सभी महिलाओं और पुरुषों को मिलेगी ₹2000 की मासिक पेंशन मिलेगी। उन्होंने वर्तमान ₹400 की पेंशन को भिखारियों से भी कम बताया और कहा कि इससे ज़्यादा तो एक भिखारी की आमदनी होती है।