क्वेटा : पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में अपनी दमनकारी नीति को और तेज करते हुए एक नया कानून लागू किया है। 4 जून को बलूचिस्तान विधानसभा द्वारा पारित (बलूचिस्तान संशोधन) अधिनियम 2025 के तहत अब सेना, आईएसआई और खुफिया एजेंसियां बिना किसी आरोप या न्यायिक निगरानी के बलूच नागरिकों को 90 दिनों तक हिरासत में रख सकेंगी। इस कदम को बलूच समुदाय की आवाज दबाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जिसके खिलाफ मानवाधिकार संगठनों और बलूच यकजहती कमेटी (BYC) ने कड़ी आपत्ति जताई है।
नए कानून के तहत संयुक्त जांच दलों (JIT) को बिना न्यायिक स्वीकृति के हिरासत आदेश जारी करने, वैचारिक प्रोफाइलिंग करने और तलाशी व जब्ती की कार्रवाइयां करने की शक्ति दी गई है। पहली बार सैन्य अधिकारियों को नागरिक निगरानी पैनलों में औपचारिक भूमिका भी सौंपी गई है। आलोचकों का कहना है कि यह कानून नागरिक पुलिस और सैन्य कार्रवाइयों के बीच की रेखा को मिटा रहा है, जिससे जन निगरानी और राज्य प्रायोजित दमन को बढ़ावा मिलेगा।
ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ पाकिस्तान (HRCP), एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस कानून को पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 10 और अंतरराष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार संधि (ICCPR) का उल्लंघन बताया है। संगठनों का दावा है कि यह कानून बलूचिस्तान में जबरन गायब किए जाने की घटनाओं को और बढ़ाएगा, जहां सैकड़ों परिवार पिछले 15-20 वर्षों से अपने लापता परिजनों की तलाश कर रहे हैं। 2008 में ही HRCP ने 1,102 लापता लोगों की सूचना दी थी, जिसमें कई मामलों में यातना और फर्जी मुठभेड़ों का आरोप ISI पर लगा।
बलूच यकजहती कमेटी (BYC) ने इस कानून को “नागरिक जीवन का सैन्यीकरण” करार देते हुए इसे नाजी यातना शिविरों और चीन के उइगर मुसलमानों के बंदीकरण से तुलना की है। BYC ने कहा कि यह कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता, उचित प्रक्रिया और मनमानी गिरफ्तारी से सुरक्षा जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
पाकिस्तान सरकार ने इस कानून का बचाव करते हुए इसे आतंकवाद विरोधी अभियानों को मजबूत करने वाला कदम बताया है। प्रांतीय प्रवक्ता के अनुसार, “यह कानून केवल राज्य विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों पर लागू होगा, कानून का पालन करने वाले नागरिकों को डरने की जरूरत नहीं।” हालांकि, इस दावे का कोई स्वतंत्र अध्ययन या सबूत पेश नहीं किया गया है।
बलूचिस्तान में पिछले डेढ़ दशक से चल रहे निम्न स्तर के अलगाववादी संघर्ष और सैन्य कार्रवाइयों की पृष्ठभूमि में यह कानून आया है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कदम बड़े पैमाने पर निगरानी और दमन को बढ़ावा दे सकता है, जिससे क्षेत्र में तनाव और गहरा सकता है।