नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) ने अपने नवीनतम शैक्षणिक पाठ्यक्रम में एक बड़ा बदलाव करते हुए संस्कृत विभाग के तहत “धर्मशास्त्र अध्ययन” नामक नया कोर्स शुरू करने की घोषणा की है। इस कोर्स में प्राचीन हिंदू ग्रंथ मनुस्मृति को शामिल किया गया है, जो पहले विवादों के कारण विधि संकाय के सिलेबस से हटा दिया गया था।
एक रिपोर्ट के अनुसार, यह कोर्स छात्रों को वर्ण और जाति व्यवस्था, विवाह की भूमिका, और नैतिकता जैसे विषयों पर गहराई से पढ़ाएगा, जो समाज के संगठन और व्यक्तिगत व्यवहार को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
पाठ्यक्रम का उद्देश्य
नए पाठ्यक्रम में छात्रों को यह समझाया जाएगा कि वर्ण या जाति व्यवस्था समाज को कैसे संगठित करती है, विवाह किस तरह से सभ्य सामाजिक व्यवस्था को मजबूत करता है, और नैतिकता व्यक्तिगत आचरण को कैसे प्रभावित करती है। यह कोर्स विशेष रूप से संस्कृत में स्नातक कर रहे छात्रों के लिए अनिवार्य होगा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि मनुस्मृति, जो पहले 2024 में विवादों के चलते पाठ्यक्रम से हटाई गई थी, अब अनुशासन-विशिष्ट पाठ्यक्रम के रूप में पुनः शामिल की गई है।
ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ
मनुस्मृति, जो लगभग 1200 ईसा पूर्व की मानी जाती है, ने चार वर्णों—ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग), क्षत्रिय (योद्धा वर्ग), वैश्य (व्यापारी वर्ग), और शूद्र (सेवक वर्ग)—को परिभाषित किया था। हालांकि, आधुनिक विद्वानों, जैसे पैट्रिक ओलिवेले, का मानना है कि यह ग्रंथ एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था का वर्णन करता है, न कि आज के कठोर जाति व्यवस्था का, जो प्रदूषण और शुद्धता के आधार पर काम करती है।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 201 मिलियन लोग (जनसंख्या का 16.6%) अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं, जो ऐतिहासिक रूप से इस व्यवस्था में हाशिए पर रहे हैं।
विवाद की आशंका
इस कदम से एक बार फिर विवाद की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि मनुस्मृति को कुछ समूहों द्वारा महिलाओं और निम्न जातियों के प्रति भेदभावपूर्ण माना जाता है। 2024 में, जब इस ग्रंथ को विधि संकाय में शामिल करने का प्रस्ताव आया था, तो व्यापक विरोध के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन को इसे वापस लेना पड़ा था। अब इसकी वापसी को लेकर सामाजिक संगठनों और शिक्षाविदों के बीच बहस छिड़ने की संभावना है।
विश्वविद्यालय का रुख
दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग ने इस कोर्स को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से पढ़ाने की बात कही है, ताकि छात्र प्राचीन भारतीय समाज की जटिलताओं को समझ सकें। विभाग के प्रमुख ने कहा, “यह कोर्स छात्रों को इतिहास और दर्शनशास्त्र की गहराई में ले जाएगा, न कि किसी विशेष विचारधारा को थोपने का प्रयास होगा।”