बिहार की राजनीति इस वक्त फिर से गर्म है। आगामी विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजद (RJD) ने अपने प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी 76 वर्षीय मंगनी लाल मंडल को सौंपने का फैसला किया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह रणनीतिक दांव पार्टी को मजबूती देगा या फिर विपक्ष के लिए हथियार बन जाएगा?
राजनीतिक सफर: लालू से लेकर नीतीश तक — फिर वापसी लालू के पास
मंगनी लाल मंडल का राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा है।
- उन्होंने 1986 में बिहार विधान परिषद से अपने करियर की शुरुआत की।
- 18 साल तक एमएलसी, फिर राजद की लालू-राबड़ी सरकार में मंत्री बने।
- 2004 में राज्यसभा पहुंचे, लेकिन 2009 आते-आते उन्होंने राजद छोड़ जदयू का दामन थाम लिया।
नीतीश कुमार की लोकप्रियता को भांपते हुए उन्होंने पार्टी बदल ली। यही नहीं, 2014 लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने अपने ही दल जदयू के खिलाफ बयान देकर पार्टी से निष्कासन झेला।
सदस्यता रद्द मामला: चुनावी हलफनामे में झूठ, कोर्ट तक मामला
2009 में जदयू के टिकट पर सांसद बनने के बाद उन पर आरोप लगा कि उन्होंने चुनावी हलफनामे में पत्नी की संख्या और संपत्ति की जानकारी छिपाई। पटना हाई कोर्ट ने उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द की। सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस फैसले को बरकरार रखा, लेकिन बाद में अन्य बेंच ने इसे पलट दिया। उनकी प्रसिद्ध टिप्पणी है कि — “मुझे नहीं पता मेरी कितनी पत्नियां हैं” — लंबे समय तक चर्चा का विषय बनी रही।
15 गुना बढ़ी संपत्ति: RTI से हुआ खुलासा
2009 में 53 लाख की संपत्ति रखने वाले मंगनी लाल मंडल की संपत्ति 2014 में 7.69 करोड़ रुपये हो गई। यानी 5 वर्षों में 15 गुना वृद्धि। यह बात भी RTI और चुनावी हलफनामे के विश्लेषण से सामने आई।
पारिवारिक विवाद और घरेलू हिंसा के आरोप
वर्ष 2013 में अपने गांव फुलपरास में पत्नी और बेटे के साथ मारपीट के आरोप भी मंगनी लाल मंडल पर लगे। इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई थी। इससे उनके सार्वजनिक जीवन की छवि पर असर पड़ा, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा कभी नहीं रुकी।
दलबदल की राजनीति: हर सत्ता के साथ खड़े
राजद, जदयू, फिर राजद — मंगनी लाल मंडल की सियासत सत्ता के समीकरणों के अनुसार बदलती रही। उन्होंने जिस लालू यादव का साथ छोड़ा था, उसी लालू ने अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है।