केंद्र सरकार द्वारा लाए गए एक नए कानून (संभावित वक्फ़ एक्ट संशोधन) के खिलाफ देश भर में विरोध की आवाज़ें तेज़ हो रही हैं। इमारत ए मरिया के इमारत ए शरियत मौलाना अहमद फैसल रहमानी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजकों ने इस कानून को ‘खतरनाक’ और ‘गिरोहबद्ध तरीके से लागू’ बताया। उनका कहना है कि यह कानून वक्फ की सम्पत्तियों को समाप्त करने की साजिश है और इससे पूरे देश की धार्मिक और सामाजिक संरचना पर गहरा असर पड़ेगा।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में वक्ताओं ने बताया कि शुरू में इस बिल को रोका जाना चाहिए था, लेकिन बाद में इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा गया। JPC की रिपोर्ट और उसमें शामिल चर्चा को भी एक पक्षीय और पूर्व नियोजित बताया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि समिति में आवाज़ उठाने वालों को पर्याप्त समय नहीं दिया गया — कभी एक मिनट, कभी डेढ़ मिनट। इसके बाद जो कानून बना, उसमें “ड्रैकोनियन प्रावधान” यानी अत्याचारी शर्तें जोड़ी गईं जो बिल से कहीं अधिक कठोर हैं।
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वक्ताओं ने एक प्रमुख अंग्रेज़ी अखबार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस नए एक्ट के आधार पर वक्फ संपत्तियों का मूल्यांकन शुरू कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में करीब 1.37 लाख वक्फ संपत्तियाँ रजिस्टर्ड हैं, लेकिन सरकारी विश्लेषण के अनुसार केवल 4000 संपत्तियाँ ही बचेंगी। आंदोलनकारियों का कहना है कि उनकी अपनी पड़ताल में ये संख्या “शून्य” तक जा सकती है।
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विरोधकर्ताओं की मांग है कि जिस तरह पहले अन्य विवादित कानूनों जैसे फार्म लॉज़, कोटा नीति आदि को जनता के दबाव पर वापस लिया गया, वैसे ही इस एक्ट को भी रद्द किया जाना चाहिए। इस सिलसिले में, “वक्फ बचाओ-दस्तूर बचाओ कॉन्फ्रेंस” का आयोजन 29 जून को पटना के गांधी मैदान में किया जा रहा है। इसमें सभी धर्मों, जातियों और वर्गों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी, दलित, पिछड़े, आदिवासी और अन्य समुदायों को एक मंच पर लाकर इस एक्ट के खिलाफ एकजुटता दिखाई जाएगी। आयोजकों ने कहा कि अगर 3.66 करोड़ ईमेल और ज्ञापन से असर नहीं पड़ा, तो लाखों लोग गांधी मैदान में “जिस्मानी तौर पर” एकत्र होकर लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपनी आवाज़ सुनाएंगे।