न्यू जर्सी : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर सुर्खियाँ बटोरी हैं, जब उन्होंने दावा किया कि वे नोबल शांति पुरस्कार के असली हकदार हैं और उनके कूटनीतिक प्रयासों के आधार पर उन्हें यह पुरस्कार 4 से 5 बार मिलना चाहिए। न्यू जर्सी में पत्रकारों से बातचीत के दौरान ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए संघर्ष विराम सहित कई वैश्विक विवादों को सुलझाने का श्रेय खुद को दिया।
ट्रम्प का बड़ा बयान
ट्रम्प ने कहा, “मुझे रवांडा, कांगो, सर्बिया और कोसोवो जैसे देशों के लिए नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकने, अब्राहम समझौते जैसे प्रयासों के लिए भी मुझे सम्मानित किया जाना चाहिए था। लेकिन वे मुझे यह पुरस्कार नहीं देंगे, क्योंकि यह केवल उदारवादियों के लिए है।” उन्होंने दावा किया कि उनकी मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम हुआ, जिससे एक बड़े परमाणु संकट से बचा जा सका।
पाकिस्तान की सिफारिश
हाल ही में पाकिस्तान सरकार ने ट्रम्प को 2025 के नोबल शांति पुरस्कार के लिए औपचारिक रूप से नामित किया है। पाकिस्तान ने अपनी घोषणा में कहा, “ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता कर एक संभावित तबाही को टाला। उनकी कूटनीति ने दक्षिण एशिया में शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।” यह कदम ट्रम्प के ट्रुथ सोशल पर दिए गए बयानों के बाद आया, जिसमें उन्होंने खुद को “युद्ध रोकने वाला” बताया।
विवाद और आलोचना
हालांकि, ट्रम्प के दावों पर सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नोबल शांति पुरस्कार ऐतिहासिक रूप से उन नेताओं को दिया गया है जिन्होंने लंबे समय तक शांति के लिए काम किया, जैसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर और मलाला यूसुफजई। ट्रम्प का दावा कि उन्हें कई बार यह पुरस्कार मिलना चाहिए, को राजनीतिक पूर्वाग्रह के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही, कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन ईरान को गुप्त सैन्य सहायता दे रहा है, जो ट्रम्प की शांति कूटनीति की सफलता पर सवाल उठा सकता है।
भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम की पृष्ठभूमि
2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव तब बढ़ा जब सीमा पर झड़पें हुईं। अमेरिकी मध्यस्थता के बाद दोनों देशों ने संघर्ष विराम पर सहमति जताई। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब तीसरे पक्ष ने मध्यस्थता की हो; 1965 के युद्ध के बाद सोवियत संघ ने भी ताशकंद घोषणा के जरिए शांति स्थापित की थी।
आगे की राह
ट्रम्प का यह बयान नोबल समिति के लिए एक नई चुनौती पेश करता है। क्या उनकी मध्यस्थता को पुरस्कार के योग्य माना जाएगा, या यह राजनीतिक विवाद को और बढ़ाएगा? इस बीच, दक्षिण एशिया में शांति की स्थिरता और चीन की कथित भूमिका पर भी नजर बनी हुई है।