नई दिल्ली : दुनिया की नजरें इस वक्त अमेरिका के ईरान पर किए गए हालिया हवाई हमले और इसके बाद पैदा हुए तनाव पर टिकी हैं। खबरों के मुताबिक, अमेरिका ने ईरान की परमाणु सुविधाओं, जिसमें फोर्दो, नतांज और इस्फाहान जैसे महत्वपूर्ण केंद्र शामिल हैं, पर स्ट्राइक की है। इस हमले को ईरानी परमाणु ऊर्जा संगठन ने “अंतरराष्ट्रीय कानून का जंगली उल्लंघन” करार दिया है, जबकि अभी तक नुकसान और हताहतों का सटीक ब्योरा सामने नहीं आया है।
होर्मुज जलडमरूमध्य: तेल की ‘जीवन रेखा’ पर खतरा
ईरान ने इस हमले के जवाब में होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है, जो वैश्विक तेल आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। यह संकीर्ण समुद्री गलियारा, जो ईरान और ओमान के बीच स्थित है, सऊदी अरब, इराक, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से रोजाना दुनिया की तेल खपत का लगभग 20% तेल ले जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह मार्ग बंद होता है, तो तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर जा सकती हैं, जैसा कि 2019 के तेल टैंकर हमलों के बाद देखा गया था, जब कीमतों में 4-6% की वृद्धि हुई थी।
भारत पर पड़ेगा गहरा असर
भारत के लिए यह स्थिति चिंता का सबब है, क्योंकि देश अपनी तेल जरूरत का 90% आयात करता है, जिसमें से 40% से अधिक मध्य पूर्व से होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते आता है। केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने हाल ही में कहा कि भारत फारस की खाड़ी के बाहर से तेल आयात और परिष्कृत उत्पादों के निर्यात में कटौती की योजना बना रहा है, ताकि इस तरह के संकट से निपटा जा सके। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से भारत में मुद्रास्फीति और बढ़ सकती है, जो पहले ही आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही है।
ईरान-इजरायल तनाव और वैश्विक जोखिम
यह घटनाक्रम ईरान और इजरायल के बीच चल रहे प्रॉक्सी संघर्ष का हिस्सा है, जिसमें ईरान हिजबुल्लाह और हमास जैसे समूहों का समर्थन करता है, जबकि इजरायल ईरानी ठिकानों को निशाना बनाता है। हाल ही में एक न्यूज इंटरव्यू में बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान के सुप्रीम लीडर को निशाना बनाने की संभावना जताई, जो स्थिति को और जटिल बना रहा है। अमेरिकी खुफिया सूत्रों का कहना है कि ईरान बड़े पैमाने के युद्ध से बचना चाहता है, लेकिन होर्मुज बंद करने की धमकी एक रणनीतिक दबाव बनाने की कोशिश हो सकती है।
विशेषज्ञों की राय
ऊर्जा विश्लेषक एलन गेल्डर (वुड मैकेंजी) के अनुसार, होर्मुज जलडमरूमध्य का बंद होना वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए “विनाशकारी” हो सकता है, क्योंकि यह 20% कच्चे तेल निर्यात का मार्ग है। दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने रविवार को आपात बैठक बुलाई है, जिसमें ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की समीक्षा होगी।
आगे क्या?
ईरान की अगली कार्रवाई और अमेरिका-इजरायल का जवाब इस संकट की दिशा तय करेगा। अगर तनाव बढ़ता है, तो न केवल तेल की कीमतें, बल्कि वैश्विक शेयर बाजार और आपूर्ति श्रृंखला भी प्रभावित हो सकती है। भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह समय ऊर्जा सुरक्षा और वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान देने का है l