नई दिल्ली : ईरान और इजरायल के बीच जून 2025 में शुरू हुए युद्ध ने न केवल क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाया है, बल्कि ईरान की आपूर्ति श्रृंखला को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरान का लगभग एक लाख टन सामान विभिन्न स्थानों पर अटका हुआ है, जिसकी किसी ने पहले कल्पना भी नहीं की थी। यह स्थिति उस समय उत्पन्न हुई है जब दोनों देशों के बीच संघर्ष चरम पर है और अमेरिका भी इसमें शामिल हो गया है।
ईरान और इजरायल के बीच संबंधों में बदलाव 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद शुरू हुआ, जब ईरान ने इजरायल की वैधता को मान्यता देने से इनकार कर दिया और फलस्तीनी समूहों का समर्थन बढ़ाया। विपरीत दिशा में, इजरायल ने ईरानी विद्रोहियों का समर्थन, हवाई हमले और वैज्ञानिकों की हत्याओं के जरिए जवाबी कार्रवाई की। हाल ही में, जून 2025 में इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) द्वारा ईरान के परमाणु प्रसार नियमों के उल्लंघन की घोषणा के बाद इजरायल ने ईरानी सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले किए, जिससे यह युद्ध शुरू हुआ।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस अटके हुए सामान से ईरान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है। ईरान की अर्थव्यवस्था, जो मुख्य रूप से तेल और गैस निर्यात पर निर्भर है, पहले से ही पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस आपूर्ति बाधा से देश की घरेलू बाजार और निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जो पहले से ही अस्थिर स्थिति को और जटिल बना सकता है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य पूर्वी मार्गों पर तेल टैंकर संचालकों ने जोखिम के आकलन के कारण अपने जहाजों की पेशकश रोक दी है, जिससे निर्यात प्रवाह पर चिंता बढ़ गई है।
हालांकि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का दावा रहा है कि ईरान बड़े पैमाने पर संघर्ष से बचता है, लेकिन वर्तमान युद्ध और आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट इस धारणा को चुनौती देती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक युद्ध खत्म नहीं होता, ईरान के लिए इस संकट से उबरना मुश्किल होगा
ईरान और इजरायल के बीच तनाव कम होने की कोई तत्काल संभावना नहीं दिख रही है। इस बीच, वैश्विक समुदाय इस बात पर नजर रखे हुए है कि यह संघर्ष क्षेत्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कितना असर डालेगा।