नई दिल्ली : भारत की तेल आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर वैश्विक कीमतों का दबाव बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर जाती हैं, तो भारत की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा। बता दें , भारत की तेल आपूर्ति में कोई कमी नहीं है, लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी चिंता का कारण बनी हुई है।
भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का 85% से अधिक हिस्सा आयात पर निर्भर करता है, जिसमें इराक और सऊदी अरब जैसे देश प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं। 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 232.5 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो इसकी बढ़ती ऊर्जा मांग को दर्शाता है। हालांकि, इस साल 23 जून को ट्रेडिंग इकॉनॉमिक्स डॉट कॉम के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतें 74.69 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं, जो पिछले 24 घंटों में 0.87% की वृद्धि को दिखाती है।
हाल के भू-राजनीतिक तनाव, विशेष रूप से अमेरिका-ईरान संबंधों ने तेल की कीमतों में अस्थिरता पैदा की है। 2019 में अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद भारत को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ी थी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर 2025 में तनाव और बढ़ता है, तो आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान हो सकता है, जिससे ईंधन की लागत में और वृद्धि हो सकती है।
एनर्जी पॉलिसी जर्नल (2022) की एक पीयर-रिव्यूड स्टडी के अनुसार, भारत के पास रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार केवल 9.5 दिन की खपत के बराबर है, जबकि ओईसीडी देशों का औसत 90 दिन का है। यह कमी भारत को कीमतों के झटकों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है, जो पोस्ट में बताई गई आपूर्ति प्रबंधन की क्षमता पर सवाल उठाती है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर देने और आयात विविधीकरण के साथ-साथ अपने रणनीतिक भंडार को मजबूत करने की आवश्यकता है। सरकार को वैश्विक बाजार की निगरानी और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए, क्योंकि तेल की कीमतों में किसी भी अप्रत्याशित उछाल से देश की अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान हो सकता है।