बिहार की राजनीति के एक प्रभावशाली और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसेमंद चेहरे डॉ. अशोक चौधरी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। लेकिन इस बार वजह कोई सियासी बयान या विभागीय निर्णय नहीं, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में उनका चयन है। 58 वर्षीय अशोक चौधरी को बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) ने असिस्टेंट प्रोफेसर (Political Science) पद के लिए चयनित किया है।
हालांकि, यह चयन उनके रिटायरमेंट की उम्र के बेहद करीब हुआ है, जब अधिकतर लोग सेवा से निवृत्त होने की तैयारी करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने इस पद के लिए आवेदन 5 साल पहले, यानी जब वे 53 वर्ष के थे, किया था। चयन एससी (SC) कैटेगरी में हुआ है, जो उनकी जातीय पृष्ठभूमि का हिस्सा है।
पिछले पांच वर्षों से अशोक चौधरी ने बिहार सरकार में विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री पद की जिम्मेदारी निभाई है। इनमें भवन निर्माण विभाग से लेकर शिक्षा विभाग तक शामिल हैं। अब उनके पास विकल्प है—या तो वह मंत्री पद से इस्तीफा देकर नई भूमिका स्वीकार करें, या फिर इस चयन को प्रतीकात्मक मानें।
विश्वविद्यालय प्रणाली में एक प्रावधान है, जिससे कोई शिक्षक राजनीति में सक्रिय रहते हुए भी छुट्टी लेकर फिर से लौट सकता है। इस लिहाज से यह संभावना भी व्यक्त की जा रही है कि यदि वे यह नौकरी जॉइन करते हैं, तो राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे, बल्कि एक “सेफ ज़ोन” बनाए रखेंगे।