नई दिल्ली : सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन (CBSE) ने 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। 2026 से 10वीं की बोर्ड परीक्षा साल में दो बार आयोजित की जाएगी। पहला चरण फरवरी में अनिवार्य होगा, जबकि दूसरा चरण मई में वैकल्पिक रहेगा। यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत उठाया गया है, जिसका उद्देश्य छात्रों पर शैक्षणिक दबाव को कम करना और बेहतर प्रदर्शन का अवसर प्रदान करना है।
CBSE के अनुसार, पहली परीक्षा फरवरी में आयोजित की जाएगी, जिसमें सभी छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य होगी। दूसरी परीक्षा मई में होगी, जो उन छात्रों के लिए वैकल्पिक होगी जो अपने स्कोर में सुधार करना चाहते हैं। आंतरिक मूल्यांकन केवल एक बार किया जाएगा, जिससे शिक्षकों के कार्यभार में भी संभावित राहत मिल सकती है।
यह निर्णय वैश्विक शिक्षा प्रणालियों, जैसे कि यूके के मॉड्यूलर A-लेवल सिस्टम, के अनुरूप है। एक हालिया अध्ययन (जर्नल ऑफ एजुकेशनल साइकोलॉजी, 2022, DOI: 10.1037/edu0000734) के अनुसार, कई बार परीक्षा देने के अवसर छात्रों के प्रदर्शन में सुधार ला सकते हैं, जो इस नीति के पीछे की सोच को मजबूत करता है।
हालांकि, इस बदलाव को लेकर कुछ आलोचनाएं भी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मई में वैकल्पिक परीक्षा के कारण कक्षा 11 की प्रवेश प्रक्रिया में देरी हो सकती है, जैसा कि मार्च 2025 में इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में उजागर किया गया। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी के कारण शहरी-ग्रामीण शिक्षा अंतर बढ़ने का खतरा भी बना हुआ है, जैसा कि यूनेस्को की 2023 की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है।
दूसरी ओर, इस नीति से ग्रामीण छात्रों को बेहतर अवसर मिल सकते हैं, क्योंकि वैकल्पिक परीक्षा उन्हें अपने प्रदर्शन को बेहतर करने का एक और मौका देगी। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि यह कदम छात्रों के शैक्षणिक बोझ को कम करने और उनकी क्षमता को बढ़ाने के लिए उठाया गया है
CBSE इस बदलाव को लागू करने के लिए बुनियादी ढांचे और शिक्षक प्रशिक्षण पर ध्यान देने की योजना बना रहा है ताकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की खाई को पाटा जा सके। छात्रों और अभिभावकों से सुझाव मांगे जा रहे हैं ताकि इस नई व्यवस्था को और प्रभावी बनाया जा सके।