मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया विवाद ने जोर पकड़ लिया है। छत्रपति संभाजीनगर लोकसभा सीट से शिवसेना सांसद संदीपनराव भूमरे के ड्राइवर जावेद रसूल शेख के नाम पर 150 करोड़ रुपये की कीमती जमीन गिफ्ट डीड के जरिए लिखवाई गई है। यह जमीन कोई साधारण संपत्ति नहीं, बल्कि हैदराबाद के पूर्व दीवान रहे प्रतिष्ठित सालार जंग परिवार की है, जिसने अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए देश-दुनिया में नाम कमाया है। इस चौंकाने वाले मामले ने सवालों की झड़ी लगा दी है और महाराष्ट्र की आर्थिक अपराध शाखा ने जांच शुरू कर दी है।
मामला कैसे आया सामने?
जानकारी के मुताबिक, जावेद रसूल शेख पिछले 13 सालों से सांसद संदीपनराव भूमरे और उनके बेटे विलास भूमरे की गाड़ी चला रहे हैं। इस जमीन की डील जालना रोड पर स्थित दाऊदपुरा इलाके में हुई, जो एक प्राइम लोकेशन माना जाता है। जावेद का दावा है कि सालार जंग परिवार के साथ उनका “बहुत अच्छा रिश्ता” है, इसी वजह से उन्हें यह जमीन तोहफे में दी गई। हालांकि, इस दावे पर संदेह जताते हुए परभणी के एक वकील ने शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने जावेद को समन जारी किया। पुलिस कमिश्नर प्रवीन पवार ने पुष्टि की कि जांच के लिए सालार जंग परिवार के मीर मजहर अली खान समेत 6 अन्य सदस्यों से भी संपर्क किया गया है, लेकिन अब तक परिवार की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है。
सांसद के बेटे का बयान
इस मामले में सांसद के विधायक बेटे विलास भूमरे ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा, “यह ड्राइवर से जुड़ा मामला है, लेकिन पुलिस हमारी और पिता के नाम को अनावश्यक रूप से घसीट रही है। आर्थिक अपराध शाखा ने मुझसे भी पूछताछ की, लेकिन हमारा ड्राइवर की निजी जिंदगी पर कोई नियंत्रण नहीं है।” विलास का यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि मामला राजनीतिक रंग ले सकता है।
सालार जंग परिवार का ऐतिहासिक महत्व
सालार जंग परिवार का इतिहास हैदराबाद निजाम के शासन से जुड़ा है। यह परिवार निजाम के प्रधानमंत्री के रूप में सेवा दे चुका है और उसकी संपत्ति में 333 गांवों समेत बड़ी मात्रा में जमीनें शामिल हैं। सालार जंग संग्रहालय की स्थापना भी इसी परिवार की देन है। ऐसे में एक साधारण ड्राइवर को इतनी बड़ी संपत्ति देने के पीछे का कारण अब जांच का विषय बन गया है।
भ्रष्टाचार का साया?
इस मामले ने महाराष्ट्र में जमीन और संपत्ति रजिस्ट्रेशन से जुड़े भ्रष्टाचार के पुराने आरोपों को भी हवा दे दी है। 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में संपत्ति रजिस्ट्रेशन के लिए 10 में से 3 मामलों में रिश्वत ली जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह गिफ्ट डीड नियमों के खिलाफ पाई गई, तो यह बड़ा घोटाला साबित हो सकता है। ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 के तहत गिफ्ट डीड स्वैच्छिक और पंजीकृत होना जरूरी है, लेकिन इस मामले में पारदर्शिता की कमी ने संदेह को बढ़ाया है।
आगे क्या?
महाराष्ट्र सरकार इस मामले पर नजर बनाए हुए है। आर्थिक अपराध शाखा की टीम अब सालार जंग परिवार के दस्तावेजों और जावेद के दावों की गहन जांच कर रही है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यह मामला राज्य की वर्तमान वित्तीय प्रबंधन पर सवाल उठा सकता है।
यह घटना न केवल एक ड्राइवर के भाग्योदय की कहानी है, बल्कि महाराष्ट्र की सत्ता और संपत्ति के गठजोड़ को उजागर करने वाली पड़ताल बन गई है। आगे की जांच के नतीजे इस मामले को किस दिशा में ले जाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।