नई दिल्ली : आज दिल्ली के संसद भवन परिसर में विदेश मामलों पर संसदीय स्थायी समिति की बैठक शुरू हुई, जिसमें भारत-बांग्लादेश संबंधों के भविष्य पर गहन विचार-विमर्श किया जा रहा है। इस बैठक में विशेषज्ञों और गैर-सरकारी गवाहों के साक्ष्य दर्ज किए जा रहे हैं, जो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण होंगे।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
बांग्लादेश की 1971 की स्वतंत्रता में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में तीस्ता नदी के जल और भूमि सीमा विवाद जैसे मुद्दे दोनों देशों के संबंधों में चुनौतियां पैदा करते रहे हैं। हाल ही में, 26 जून 2025 को द हिंदू की एक रिपोर्ट में इन अनसुलझे मुद्दों पर प्रकाश डाला गया, जो आज की बैठक में चर्चा का केंद्र बिंदु हो सकते हैं। इसके अलावा, बांग्लादेश सेना प्रमुख वाकर-उज-जमान ने जनवरी 2025 में प्रोथोम आलो इंग्लिश को दिए साक्षात्कार में दोनों देशों के बीच संतुलित और पारस्परिक लाभकारी संबंधों की वकालत की, जो शेख हसीना के 2009-2024 के कार्यकाल के बाद संबंधों में बदलाव का संकेत देता है।
आर्थिक और भू-राजनीतिक आयाम
भारत ने बांग्लादेश के साथ आर्थिक सहयोग को मजबूत करने के लिए कदम उठाए हैं, जिसमें 1,320 मेगावाट की रामपाल पावर प्लांट परियोजना शामिल है, जो दोनों देशों के बीच 50:50 संयुक्त उद्यम है। जर्नल ऑफ एशियन स्टडीज (2023) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह के आर्थिक सहयोग से भू-राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद संबंधों को स्थिर करने में मदद मिल सकती है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने 26 जून 2025 को कहा कि भारत बांग्लादेश के साथ सकारात्मक संवाद के लिए प्रतिबद्ध है, जो आज की बैठक में भी परिलक्षित हो सकता है।
बैठक का महत्व
इस बैठक का समय इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाल के दिनों में बांग्लादेश में रेलवे भूमि पर मंदिर विध्वंस और भारत द्वारा बांग्लादेशी वस्तुओं पर लगाए गए आयात प्रतिबंध जैसे विवाद सामने आए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये मुद्दे भारत-बांग्लादेश संबंधों के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
समिति की सिफारिशें और विशेषज्ञों के विचार न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करेंगे, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग के लिए भी दिशा-निर्देश प्रदान कर सकते हैं। बैठक के परिणामों पर सभी की नजरें टिकी हैं।