तरैया. बिहार में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण अभियान शुरू किया है। इस प्रक्रिया के तहत मतदाताओं को अपनी नागरिकता और जन्म की पहचान से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे। सारण विकास मंच ने जल्दबाज़ी में लागू की गई इस प्रक्रिया पर गहरी आपत्ति दर्ज की है। इस संबंध में सारण विकास मंच के संयोजक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इस बार ऐसा क्या बदला है, जो इतनी हड़बड़ी में यह विशेष ड्राइव चलाई जा रही है? हर बार मतदाता सूची का अद्यतन सामान्य प्रक्रिया के तहत होता है। परंतु इस बार मात्र 25-30 दिनों में 8 करोड़ मतदाताओं की जांच करने का निर्णय न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी प्रतीत होता है। वर्ष 2003 में जब ऐसी प्रक्रिया अपनाई गई थी, तब इसे पूरा करने में दो वर्ष से अधिक का समय लगा था।
शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के आरोपों पर चिंता जायज है। जब इस प्रक्रिया में पासपोर्ट, माता-पिता की नागरिकता प्रमाण, जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, तो स्पष्ट है कि यह गरीब, ग्रामीण, मजदूर, बुज़ुर्ग और समाज के वंचित तबकों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाएगी। इन वर्गों के पास आमतौर पर ऐसे दस्तावेज़ नहीं होते। इससे उनकी मताधिकार पर गहरी चोट हो सकती है। चुनाव से ठीक पहले इस प्रक्रिया को शुरू करना, संदेहास्पद है।
शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि बिहार जैसे विशाल और जटिल जनसंख्या वाले राज्य में इस तरह की प्रक्रिया को लागू करना बिना पूर्व तैयारी के आत्मघाती कदम है। बिहार में पलायन बहुत है, लोग बाहर रहते हैं। कई घरों की स्थिति तो ऐसी है कि उनका पूरा परिवार ही बाहर रहता है और घरों में ताला बंद है। ये परिवार सिर्फ पर्व त्योहार में आ पाते हैं। ऐसे लोगों का पुनरीक्षण कैसे होगा। चुनाव आयोग का यह दायित्व है कि वह जवाबदेही के साथ कार्य करे और किसी भी नीति की तार्किक समीक्षा को नकारे नहीं। वोटर लिस्ट की सफाई जरूरी है, लेकिन पारदर्शिता से। हमें कोई आपत्ति नहीं है कि वोटर लिस्ट में फर्जी नाम हटें। लेकिन क्या चुनाव आयोग बताएगा कि फर्जी वोटर बनते कैसे हैं? और सिर्फ ज़रूरतमंदों को ही क्यों निकाला जाएगा, ताकतवरों को क्यों नहीं?
दरअसल, भाजपा ने महाराष्ट्र में पिछले साल हुए चुनाव में भाजपा ने वोटर लिस्ट के साथ जो खेल किया, कुछ ऐसा ही बिहार के साथ करने की कोशिश चल रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह प्रक्रिया एक रणनीतिक हथकंडे के तहत लाई गई है, ताकि कुछ तबकों को मतदाता सूची से बाहर किया जा सके। हमारा आग्रह है चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को स्थगित करे, सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों से संवाद करे और इसके बाद ही मतदाता सूची पुनरीक्षण की पारदर्शी और न्यायसंगत प्रक्रिया अपनाए। लोकतंत्र में चुनाव एक पवित्र प्रक्रिया है, इसे संदेह के घेरे में लाना लोकतंत्र को कमजोर करना है।