भारत के पहले निजी हिल सिटी प्रोजेक्ट लवासा कॉर्पोरेशन के अधिग्रहण के लिए छह कंपनियों ने ₹500 करोड़ से ₹850 करोड़ तक की बोली लगाई है। कर्ज में डूबी इस कंपनी को बेचने के लिए लेनदारों ने दूसरी बार प्रयास किया है। वेल्सपन ग्रुप ने अपनी सहायक कंपनी के जरिए ₹850 करोड़ (प्रक्रिया लागत सहित) की सबसे ऊंची बोली लगाई है।
कौन-कौन है दावेदार?
- वेल्सपन ग्रुप: ₹850 करोड़ की बोली (सबसे ऊंची)
- अशदान और प्राइड पर्पल (पुणे के डेवलपर्स): संयुक्त रूप से ₹843 करोड़ की बोली
- मैक्रोटेक डेवलपर्स (लोधा ग्रुप)
- डीबी कॉर्प की सहायक कंपनी वैलोर
- जिंदल स्टील एंड पावर (JSPL) ग्रुप
- मुंबई स्थित योगायतन समूह
योगायतन समूह की खास पेशकश
दिलचस्प बात यह है कि योगायतन समूह ने अपनी बोली में महाराष्ट्र सरकार से पर्यावरणीय मंजूरी की कोई शर्त नहीं रखी है। सूत्रों के मुताबिक, योगायतन की बोली ₹2800 करोड़ के आसपास है, जो एक मजबूत प्रस्ताव माना जा रहा है।
लेनदारों को 87% से अधिक का नुकसान
लवासा पर ₹16,642 करोड़ से अधिक का कर्ज है, लेकिन सबसे ऊंची बोली (₹850 करोड़) भी इसका 13% से कम है। इसका मतलब है कि लेनदारों को 87% से अधिक का हेयरकट झेलना पड़ सकता है।
पर्यावरण मंजूरी बनी बड़ी रुकावट
लवासा प्रोजेक्ट के डूबने की सबसे बड़ी वजह महाराष्ट्र सरकार से पर्यावरणीय मंजूरी न मिल पाना रहा है। अधिकांश बोलियाँ इसी मंजूरी पर शर्त के साथ लगाई गई हैं। हालांकि, योगायतन समूह ने बिना किसी शर्त के बोली लगाकर खुद को एक मजबूत दावेदार साबित किया है।
NCLT की भूमिका और पिछला विवाद
- 2021 में डार्विन प्लेटफॉर्म इंफ्रास्ट्रक्चर (DPIL) ने ₹1,814 करोड़ के प्रस्ताव के साथ लवासा को संभालने की पेशकश की थी।
- 2023 में NCLT ने इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया, क्योंकि DPIL ₹100 करोड़ की अग्रिम राशि नहीं दे पाया।
- अब कोर्ट ने दूसरी बार प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति दी है।
लवासा प्रोजेक्ट: एक नजर में
लवासा को 21वीं सदी की शुरुआत में भारत का पहला निजी हिल सिटी प्रोजेक्ट बताया गया था। मुंबई और पुणे के अमीर निवासियों को टारगेट करते हुए इसे प्रदूषण मुक्त शहर के रूप में प्रचारित किया गया था। लेकिन, वित्तीय संकट और कानूनी झंझटों ने इसे डूबने के कगार पर ला खड़ा किया।