बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के मामले पर विपक्ष हमलावर है। विपक्ष इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जा चुका है। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने सोमवार को चुनाव आयोग से मांग की कि राज्य में चल रही मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (स्पेशल इंटेंसिव रिविजन) को आगामी विधानसभा चुनाव तक स्थगित कर दिया जाए। पटना में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी ने कहा कि यह प्रक्रिया मतदाताओं के लिए परेशानी का कारण बन रही है। इस मौके पर उनके साथ INDIA गठबंधन के अन्य दलों के नेता भी मौजूद थे।
तेजस्वी यादव ने इसको लेकर एक्स पर भी लंबा चौड़ा पोस्ट लिखकर चुनाव आयोग को कंफ्यूज्ड बताया है। तेजस्वी यादव ने कहा कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण में चुनाव आयोग पूर्णत: कन्फ़्यूज़्ड है। EC एक दिन में तीन अलग अलग दिशा निर्देश जारी कर रहा है। बिहार के लाखों मतदाताओं के अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी विज्ञापनों और फेसबुक पोस्ट में पाए गए गंभीर विरोधाभासों पर हम अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते है।
भारत निर्वाचन आयोग ने कल बिहार के समाचार पत्रों में पूर्ण पृष्ठीय विज्ञापन प्रकाशित किया है, जिसमें कहा गया कि “यदि दस्तावेज़ और फोटो उपलब्ध नहीं हो, तो भी गणना प्रपत्र भरकर बीएलओ को दें। यह बात निर्वाचन आयोग के पूर्व आदेश दिनांक 24 जून 2025 से स्पष्ट रूप से अलग है, जिसमें 11 निर्धारित दस्तावेज़ों और फोटो की अनिवार्यता कही गई थी।
06 जुलाई को आयोग के बिहार कार्यालय द्वारा दो फेसबुक पोस्ट किए गए- पहला पोस्ट (दोपहर 2 बजे): दस्तावेज़ बाद में भी दिए जा सकते हैं। दूसरा पोस्ट (3 बजे): दस्तावेज़ 25 जुलाई 2025 तक ही दिए जा सकते हैं या दावे/आपत्ति की अवधि में। यह भ्रम पैदा कर रहा है कि आखिर आयोग की वास्तविक नीति क्या है। आज तक आयोग द्वारा इस संबंध में कोई आधिकारिक अधिसूचना या संशोधित आदेश जारी नहीं किया गया है।
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क्या विज्ञापन और सोशल मीडिया पोस्ट अब संवैधानिक संस्था की नीति का वाहक बन गए हैं? भारत निर्वाचन आयोग को विज्ञापन नहीं बल्कि आधिकारिक अधिसूचना जारी कर संशोधन के बारे में अवगत कराना चाहिए। हर घंटे नियम-निर्देश बदल रहे है। कोई मजाक है क्या? आम आदमी में यह शंका उत्पन्न हो रही है कि आयोग पहले दस्तावेज़ के बिना फॉर्म इकट्ठा कर लेगा और बाद में राजनीतिक प्राथमिकताओं के अनुसार कुछ नाम जोड़े या हटाए जा सकते हैं। क्या यह जन भागीदारी की सुविधा है या पूर्व नियोजित योजना?
चुनाव आयोग ने इस पर विधिवत आदेश जारी क्यों नहीं किया है? ऐसे विरोधाभासी बयानों से आम जनमानस में अविश्वास पनप रहा है। चुनाव आयोग आँकड़े जारी कर बता रहा है इतने प्रपत्र बाँट दिए, इतने फॉर्म collect कर लिए लेकिन यह सब वास्तविकता से बहुत ही दूर है। सब Eye Wash है। निर्वाचन आयोग जैसी संस्था की साख पर सवाल उठना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।
हमारी कुछ माँगें है:-
- भारत निर्वाचन आयोग तत्काल इस संबंध में स्पष्ट, लिखित और आधिकारिक आदेश जारी करे।
- किसी भी विज्ञापन या फेसबुक पोस्ट की जगह राजपत्र अधिसूचना या सार्वजनिक प्रेस नोट के माध्यम से नीति बताई जाए।
- बिना दस्तावेज़ प्राप्त फॉर्म के दुरुपयोग की आशंका को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र निगरानी तंत्र बनाया जाए।
- मतदाता नामांकन/हटाने की प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता और राजनीतिक निरपेक्षता सुनिश्चित हो।
- आयोग विपक्ष एवं जनता द्वारा उठाए जा रहे सवालों, शंकाओं, शिकायतों और गंभीर आरोपों का बिंदुवार जवाब दें।
पटना निर्वाचन आयोग बैठक में भ हमने निम्न सवाल पूछे थे:-
- क्या भारतीय निर्वाचन आयोग को केवल वही 11 दस्तावेज स्वीकार करने का विशेषाधिकार प्राप्त है?
- सरकार द्वारा जारी अन्य दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, इत्यादि मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया में अस्वीकार्य क्यों है, भले ही वे पहचान या निवास सिद्ध करें?
- आधार कार्ड जारी करते वक्त सरकार आपकी आँखों की पुतली, फ़िंगरप्रिंट्स सहित पहचान और आवास के कई दस्तावेज माँगती है तभी आधार कार्ड बनता है। फिर सरकार अपने द्वारा बनाए गए आधार कार्ड को क्यों छाँट रही है?
- यदि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम अथवा संविधान में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है तो यह 11 दस्तावेजों की सूची किस प्रक्रिया से तय हुई? क्या यह न्यायसंगत है?
- बिहार के 4 करोड़ से अधिक निवासी अन्य राज्यों में स्थायी और अस्थायी कार्य करते है। क्या 18 दिन में वो अपना सत्यापन कर पाएंगे? क्या सरकारी स्तर पर उन्हें बिहार लाने की कोई योजना है अथवा उनके वोट काटना उद्देश्य है?
- निर्वाचन आयोग Dashboard के ज़रिए सभी को बताए को “विधानसभा वार” प्रतिदिन कितने मतदाताओं का अब तक सत्यापन हुआ? कितने मतदाताओं का मत अस्वीकृत हुए? अगर इनकी मंशा ठीक है तो चुनाव आयोग को इस पर विधानसभा वार Dashboard के माध्यम से Live Realtime अपडेट देना चाहिए।
- निर्वाचन आयोग ने बताया कि प्रत्येक BLO के साथ 4 स्वयंसेवक लगाए गए है। हमने पूछा कि ये वॉलियंटर्स कौन है और इनके चयन का मानदंड क्या है? क्या वो सरकारी कर्मचारी है अथवा अन्य लोग?? हमने माँग रखी कि चुनाव आयोग BLO की तरह इन वॉलंटियर्स” यानि स्वयंसेवकों की भी सूची प्रकाशित करें ताकि सभी लोग उनका सत्यापन कर सकें। क्या इन स्वयंसेवकों की कोई आधिकारिक ट्रेनिंग हुई है?