Nimisha Priya Case: केरल की नर्स निमिषा प्रिया के लिए संकट और गहराता जा रहा है। भारत सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट कर दिया कि वह यमन सरकार से ब्लड मनी (रक्त धन) के माध्यम से समझौता करने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। यह बयान उस समय आया है जब निमिषा को 16 जुलाई को यमन में फांसी की सजा दिए जाने की आशंका है।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ को बताया कि “यह एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून और यमन की संवेदनशीलताओं को देखते हुए भारत की कूटनीतिक पहुंच सीमित है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि ब्लड मनी का मामला पूरी तरह से पीड़ित परिवार और दोषी पक्ष के बीच एक निजी समझौता है, जिसमें सरकारी हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं है।
निमिषा प्रिया पर 2017 में यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या का आरोप है। केरल के पलक्कड़ जिले की इस नर्स ने एक सहयोगी के साथ मिलकर महदी के शव को काटकर भूमिगत टैंक में छिपाने का प्रयास किया था। यमनी अदालत ने 2020 में उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ऑफ यमन ने भी बरकरार रखा।
इस्लामिक कानून (शरीया लॉ) के तहत, ब्लड मनी (दिया प्रथा) एक विशेष प्रावधान है जहां हत्या के मामले में पीड़ित परिवार आर्थिक मुआवजे के बदले अपराधी को क्षमा कर सकता है। यह रकम आमतौर पर दोनों पक्षों की सहमति से तय होती है। हालांकि, यमन में इस प्रक्रिया के लिए पीड़ित परिवार की सहमति अनिवार्य है, जो अब तक नहीं मिली है।
केरल हाई कोर्ट ने पिछले साल केंद्र सरकार से यमन सरकार के साथ बातचीत तेज करने को कहा था। विदेश मंत्रालय ने बताया कि उन्होंने निमिषा के लिए कानूनी सहायता और कॉन्सुलर एक्सेस सुनिश्चित किया, लेकिन यमन की आंतरिक न्याय प्रक्रिया में हस्तक्षेप संभव नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भारत की विदेश नीति की जटिलताओं को उजागर करता है, खासकर उन देशों में जहां शरीया कानून लागू हो।
निमिषा के वकीलों ने अब यमन में पीड़ित परिवार से सीधे बातचीत का विकल्प तलाशने का फैसला किया है। इस बीच, केरल के विभिन्न संगठनों ने सरकार से और प्रयास करने की मांग की है। सोशल मीडिया पर #SaveNimishaPriya अभियान फिर से तेज हो गया है, जबकि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने यमन सरकार से मृत्युदंड रोकने की अपील की है।