Bihar voter list update: बिहार की राजनीतिक गलियारों में इन दिनों एक नया मुद्दा गूंज रहा है। चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत राज्य की मतदाता सूची से लगभग 61.1 लाख नाम हटाए जाने की तैयारी है। यह संख्या बिहार के हर विधानसभा क्षेत्र में औसतन 25,000 मतदाताओं के नाम काटे जाने के बराबर है, जिससे आगामी विधानसभा चुनावों के नतीजों पर गहरा प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इन 61.1 लाख मतदाताओं में से 21.6 लाख वे हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उनके नाम अभी तक सूची से नहीं हटाए गए थे। 31.5 लाख ऐसे मतदाता हैं जो स्थायी रूप से बिहार से बाहर चले गए हैं। इसके अलावा, 7 लाख डुप्लीकेट वोटर (एक से अधिक जगह पंजीकृत) और 1 लाख ऐसे मतदाता हैं जिनका कोई पता नहीं लगाया जा सका है।
2020 के चुनावों को याद कर बढ़ी चिंता
राजनीतिक दलों की चिंता का सबसे बड़ा कारण 2020 के विधानसभा चुनावों के नतीजे हैं। उस समय 11 सीटों पर जीत-हार का अंतर 1,000 वोटों से भी कम था, जबकि 35 सीटों पर यह अंतर 3,000 वोटों से कम और 52 सीटों पर 5,000 वोटों से कम रहा था। अब अगर हर विधानसभा क्षेत्र से औसतन 25,000 वोटरों के नाम कट जाते हैं, तो इसका सीधा असर उन नजदीकी सीटों पर पड़ेगा जहां पिछली बार मामूली अंतर से जीत या हार हुई थी।
विपक्ष का आरोप: “जल्दबाजी में लिया गया फैसला”
महागठबंधन के नेताओं ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे “चुनाव से पहले की जल्दबाजी” बताया है। उनका कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर नाम हटाने से पहले और समय दिया जाना चाहिए था। विशेषकर उन मामलों में जहां लोग अस्थायी रूप से रोजगार या अन्य कारणों से बाहर गए हों।
जबकि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को पारदर्शी बताते हुए कहा है कि अधिकारियों ने 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 7.21 करोड़ तक पहुंचकर उनके गणना प्रपत्र जमा कर लिए हैं। केवल 7 लाख मतदाताओं ने अभी तक अपना प्रपत्र वापस नहीं किया है। आयोग का दावा है कि यह अभियान मतदाता सूची को और अधिक सटीक बनाने के लिए किया जा रहा है ताकि चुनावों में धांधली की कोई गुंजाइश न रहे।