बिहार सरकार में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी इन दिनों आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। अशोक चौधरी को विधान परिषद में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने ‘सरकार का दलाल’ कह दिया। आहत अशोक चौधरी ने गुरुवार को सदन में तो बोले ही, वहां से छूटते ही फेसबुक पोस्ट के जरिए अपनी ‘प्रताड़ना’ पर भड़ास निकाली। इससे पहले अशोक चौधरी एक अलग रोल, फिल्म समीक्षक के तौर पर फेसबुक पोस्ट के जरिए ही सामने आए।
राजद पर जातियों को उकसाने का प्रयास
अशोक चौधरी ने गुरुवार को शाम एक फेसबुक पोस्ट किया, जिसमें सीएम नीतीश कुमार की शान में तारीफों के पुल बनाए। उन्होंने लिखा कि जिनके नेतृत्व और सुशासन में राज्य को पांच कृषि कर्मण पुरस्कार मिले, जिनके शासनकाल में बिहार फर्श से अर्श तक पहुंचा, लड़कियां शिक्षित और महिलाएं स्वावलंबी बनीं और राज्य का अभूतपूर्व विकास हुआ। जिनके प्रयासों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सराहना मिली। अगर ऐसे नेता के साथ बिहार के विकास के लिये दिन-रात कार्य करने वालों को ये लोग ऐसे अमर्यादित शब्दों से संबोंधित करते हैं, तो ये राजद के लिए कोई नई बात नहीं है, ये लोग हमेशा से यही करते आये हैं। जातियों को उकसाना, भड़काना और उनके साथ अमानवीय व्यवहार करना राजद का पेशा रहा है। इन्होंने सिर्फ मेरी या सरकार में अन्य नेताओं के साथ असंसदीय और अमर्यादित व्यवहार नहीं किया है बल्कि समस्त बिहार को गाली दी है। जो न सिर्फ अक्षम्य है बल्कि घोर निंदनीय भी है।
The Kashmir Files की समीक्षा भी की
राबड़ी देवी के कथन पर जवाब से ठीक पहले अशोक चौधरी ने फेसबुक पोस्ट किया, वो The Kashmir Files की समीक्षा पर आधारित रही। अशोक चौधरी ने ‘अपनी बात’ कहते हुए लिखा कि पिछले कई दिनों से ‘द कश्मीर फाइल्स’ की बड़ी चर्चा सुन रहा था समय की कमी के बावजूद फिल्म पर लगातार चल रही चर्चाओं से मन में जो कौतूहल बना हुआ था। उसी क्रम में पत्नी के साथ समय निकालकर ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखने चला गया। जब विवेक अग्निहोत्री जी की फिल्म द कश्मीर फाइल्स देखी तो ऐसा लगा कि उन्होंने क्रूर और जिहादी मानसिकता वाले लोगों के दरिंदगी से भरे चेहरे और कश्मीरी पंडितों के जरूरी मानवीय मुद्दे को स्क्रीन पर अच्छे से उकेरा है। लेकिन इस प्रयास में उन्होंने एक पूरी कौम पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। फिल्म में कई ऐसे दृश्य दिखाए गए हैं जहाँ मुझे लगता है कि सेंसर बोर्ड को ऐसे हृदयविदारक दृश्यों को सेंसर करने की आवश्यकता थी।
सीन के फिल्मांकन पर आपत्ति जताई
अशोक चौधरी ने फिल्म के एक सीन पर आपत्ति जताते हुए कहा कि एक दृश्य में 25 लोगों को गोली मारी जाती है। एक-एक का दृश्य हमें स्क्रीन पर दिखाया जाता है। मैं मानता हूं कि ये नृशंस कृत्य थे लेकिन इस प्रकार से इनका फिल्मांकन दर्शकों को गलत रूप से व्यथित कर सकता है।
नरसंहार के दौर का जिक्र
अशोक चौधरी ने अपने पोस्ट में आगे लिखा कि बिहार में एक दौर था जब यहां के लोगों ने 100 से अधिक नरसंहार देखे। लेकिन पिछले 17 वर्षों के दौरान हमने इसे भूल कर नए बिहार के लिए आपसी सद्भावना बनाई है। जो हमारे यशश्वी नेता श्री नीतीश कुमार जी के नेतृत्व वाली सरकार के, जनमानस के लिए एवं बिहार के विकास के लिए किये गए प्रयासों से संभव हुआ है। उन्होंने आगे लिखा कि सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जो लोगों को सर्वाधिक प्रभावित करता है। कहा जाता है कि ‘One minute of video is worth million words’ (एक मिनट का वीडियो मिलियन शब्दों के बराबर है)। इसीलिए मेरा मानना है कि जब हमारे पास जन मानस को वृहद् रूप से प्रभावित करने वाला माध्यम हो तो उसका प्रयोग हमें ज़िम्मेदारी से समाज के लोगों के मनोभाव पर विपरीत प्रभाव दिए बिना करना चाहिए। रक्त रंजित दृश्यों से परे सरकार के स्तर पर आज के कश्मीर के लिए किये जाने वाले प्रयासों को दिखाना भी मेरी समझ से उचित होता।