बिहार सरकार के बड़े फैसले ने 9000 से अधिक विशेष सर्वेक्षण संविदा कर्मियों के भविष्य को अधर में लटका दिया है। भू-अभिलेख एवं परिमाप निदेशालय ने हड़ताल पर बैठे इन कर्मियों की सेवा समाप्त कर दी है और पदों को रिक्त घोषित करते हुए नए सिरे से बहाली की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की है। सरकार का तर्क है कि कई बार चेतावनी और अपील के बावजूद अधिकांश कर्मचारी ड्यूटी पर वापस नहीं लौटे, जिसके चलते यह कठोर कदम उठाना पड़ा।
इस फैसले से आक्रोशित संविदा कर्मी पटना के गर्दनीबाग धरनास्थल पर अब भी आंदोलनरत हैं। कई लोग अनशन पर बैठे हुए हैं, जिनमें से कुछ की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें पीएमसीएच में भर्ती कराना पड़ा। बावजूद इसके, प्रदर्शनकारी अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि सात साल तक सेवा लेने के बाद अचानक नौकरी से निकाल देना न केवल अन्याय है बल्कि उनके भविष्य पर भी सीधा प्रहार है।
आंदोलित कर्मियों से आज पूर्णिया सांसद पप्पू यादव मिलने पहुंचे। उन्होंने न सिर्फ धरनास्थल पर प्रदर्शनकारियों से बातचीत की बल्कि भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी से फोन पर बात कर संविदा कर्मियों के साथ इंसाफ करने की अपील की। मीडिया से बातचीत में पप्पू यादव ने कहा कि सरकार ने इन युवाओं की नियुक्ति लिखित परीक्षा के जरिए की थी, ऐसे में एक झटके में सेवा समाप्त करना नाइंसाफी है। उन्होंने इसे “13 हजार बच्चों का सवाल” बताते हुए कहा कि भूख हड़ताल पर बैठे युवाओं के जीवन से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए और सरकार को संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए।
उधर, विभागीय प्रेस विज्ञप्ति में साफ कहा गया है कि संविदा कर्मियों को बार-बार कर्तव्य पर लौटने का मौका दिया गया। पहले 30 अगस्त और फिर अंतिम अवसर के रूप में 3 सितंबर शाम 5 बजे तक समय सीमा तय की गई थी। इस दौरान करीब 3295 कर्मी ड्यूटी पर लौट भी आए, लेकिन बड़ी संख्या में हड़ताल पर बने रहे। नतीजतन शेष कर्मियों की सेवा समाप्त कर दी गई और रिक्त पदों पर नई भर्ती की प्रक्रिया इस माह के अंत तक शुरू करने का ऐलान कर दिया गया है।
















