सीतामढ़ी जिले की बथनाहा विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में एक अहम स्थान रखती है। यह सीट 1967 में अस्तित्व में आई और पहली बार इसी वर्ष यहां चुनाव हुए। शुरुआत में यह सामान्य श्रेणी की सीट थी, लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद इसे अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया। तब से अब तक इस सीट की राजनीतिक दिशा कई बार बदली, लेकिन पिछले एक दशक से भारतीय जनता पार्टी (BJP) यहां पर मजबूती से काबिज है।
पिछले चुनाव के नतीजे
बथनाहा का राजनीतिक इतिहास बताता है कि 2005 में यह सीट लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के पास थी, जब नगीना देवी ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2010 के चुनाव में भाजपा के दिनकर राम ने लोजपा उम्मीदवार ललिता देवी को हराकर सत्ता में वापसी की। यहीं से भाजपा का इस सीट पर वर्चस्व स्थापित होना शुरू हुआ।
2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर जीत दर्ज की। इस बार मुकाबला भाजपा के दिनकर राम और कांग्रेस के सुरेंद्र राम के बीच हुआ, जिसमें भाजपा को 74,763 वोट और कांग्रेस को 54,597 वोट मिले। अंतर साफ़ था कि जनता ने भाजपा के पक्ष में भरोसा जताया।
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2020 में हुए विधानसभा चुनाव ने भाजपा की पकड़ को और मजबूत कर दिया। भाजपा उम्मीदवार अनिल राम ने कांग्रेस प्रत्याशी संजय राम को करारी शिकस्त दी। अनिल राम को 92,648 वोट मिले, जबकि संजय राम को केवल 45,830 वोट मिले। जीत का अंतर 46,818 वोटों का रहा, जिसने यह साबित कर दिया कि भाजपा का इस सीट पर दबदबा लगातार बढ़ रहा है।
जातीय समीकरण और मतदाता संरचना
बथनाहा सीट पर कोइरी, पासवान और रविदास समुदाय की अहम भूमिका है। यही जातियां यहां निर्णायक वोटर मानी जाती हैं। कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 2,64,299 है, जिनमें से 1,38,385 पुरुष और 1,25,901 महिलाएं हैं। इस सीट पर दलित और पिछड़े वर्ग के वोटों की संख्या अधिक होने के कारण हर चुनाव में उम्मीदवारों की रणनीति इन्हीं वर्गों के इर्द-गिर्द घूमती है।
बथनाहा विधानसभा सीट पर पिछले 10 सालों से भाजपा का परचम लहराता आ रहा है। हालांकि कांग्रेस और लोजपा जैसी पार्टियों ने यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, लेकिन आरक्षण लागू होने और भाजपा की जमीनी पकड़ ने अन्य दलों के लिए चुनौती बढ़ा दी है। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा अपनी जीत की परंपरा को बरकरार रख पाती है या विपक्ष कोई नया समीकरण गढ़कर बाजी पलटता है।






















