Bisfi Vidhan Sabha: बिहार की राजनीति में मधुबनी जिले की बिस्फी विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 35) एक अहम भूमिका निभाती रही है। इस सीट का राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 1967 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में यहां से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) के नेता आरके पूर्बे ने निर्दलीय प्रत्याशी नूरिद्दीन को हराकर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1969 में भी पूर्बे ने जीत दोहराई। 1967 से लेकर 2000 तक इस सीट पर कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिला। वाम दलों की पकड़ 1995 तक यहां मजबूत रही।
चुनावी इतिहास
2000 के बाद धीरे-धीरे यहां का समीकरण बदलने लगा और राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों की पकड़ मजबूत होती गई। 2010 में राजद (RJD) के टिकट पर डॉ. फैयाज अहमद ने जीत दर्ज की। उन्होंने जदयू के हरिभूषण ठाकुर को 9501 वोटों के अंतर से हराया। 2015 में भी डॉ. फैयाज ने जीत का परचम लहराया और रालोसपा उम्मीदवार मनोज कुमार यादव को बड़े अंतर से शिकस्त दी।
लेकिन 2020 का चुनाव इस सीट पर बड़ा मोड़ साबित हुआ। इस बार भाजपा (BJP) के हरिभूषण ठाकुर ने राजद के फैयाज अहमद को हराकर सीट पर कब्जा जमाया। ठाकुर को कुल 86,298 वोट मिले, जबकि फैयाज अहमद को 75,829 वोट हासिल हुए। इस तरह भाजपा ने 10,241 वोटों से जीत दर्ज कर अपनी पैठ और मजबूत कर ली।
जातीय समीकरण
बिस्फी सीट का जातीय समीकरण भी हमेशा चुनावी नतीजों को प्रभावित करता रहा है। यहां ब्राह्मण मतदाता सबसे बड़ी संख्या में मौजूद हैं, लेकिन मुस्लिम वोटर भी हार-जीत तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कुल 2,77,683 मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में 1,44,640 पुरुष और 1,33,038 महिला मतदाता हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि कोई भी राजनीतिक दल केवल एक वर्ग पर निर्भर रहकर यहां चुनाव नहीं जीत सकता, बल्कि सभी समुदायों को साधने की रणनीति ही सफलता दिला सकती है।
बिस्फी विधानसभा का राजनीतिक सफर बताता है कि यह सीट न तो पूरी तरह किसी एक दल की रही है और न ही किसी जातीय समीकरण पर स्थायी तौर पर टिकी है। वाम दलों से शुरू हुई यह कहानी कांग्रेस, राजद और अब भाजपा के हाथों में पहुंच चुकी है। आने वाले विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रख पाती है या राजद फिर से वापसी करती है।






















