Rajnagar Vidhansabha Seat: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का काउंटडाउन शुरू हो चुका है और मधुबनी जिले की राजनगर विधानसभा सीट एक बार फिर सुर्खियों में है। निर्वाचन क्षेत्र संख्या 37, राजनगर, अनुसूचित जाति (SC) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है और इसका राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। यह सीट पहली बार 1967 में अस्तित्व में आई थी, जब कांग्रेस के आर. महतो यहां से विजयी हुए थे। 1972 तक यह सीट सक्रिय रही और फिर परिसीमन के बाद 2010 में इसे दोबारा बहाल किया गया। मौजूदा समय में यह सीट भाजपा के पास है और रामप्रीत पासवान इसके विधायक हैं।
चुनावी इतिहास
इस सीट पर सत्ता का समीकरण लगातार भाजपा और राजद के बीच घूमता रहा है। 2010 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के रामलखन राम रमन ने रामप्रीत पासवान को हराया था। लेकिन 2014 में हुए उपचुनाव में रामावतार पासवान (राजद) ने बढ़त बनाई और भाजपा को करारी शिकस्त दी। इसके बाद 2015 में रामप्रीत पासवान ने वापसी करते हुए आरजेडी के रामावतार पासवान को कड़ी टक्कर देकर जीत हासिल की। उस चुनाव में भाजपा को 71,614 और राजद को 65,372 वोट मिले थे।
मधुबनी विधानसभा चुनाव 2025: मिथिला की पहचान वाली सीट पर किसका रहेगा दबदबा?
2020 का चुनाव राजनगर विधानसभा के लिए भाजपा के लिहाज से सबसे अहम साबित हुआ। इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार रामप्रीत पासवान ने आरजेडी के रामावतार पासवान को 19,121 वोटों के बड़े अंतर से हराया। भाजपा को 89,459 वोट मिले, जबकि राजद प्रत्याशी को 70,338 वोट हासिल हुए। इस नतीजे ने साफ कर दिया कि भाजपा ने यहां मजबूत पकड़ बना ली है।
जातीय समीकरण
हालांकि, आगामी चुनाव को लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है क्योंकि इस सीट पर जातीय समीकरण सबसे निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पासवान और रविदास समाज के मतदाता यहां की राजनीति में अहम माने जाते हैं। इनके अलावा भूमिहार, कुर्मी और कोइरी मतदाता भी चुनावी नतीजों को गहराई से प्रभावित करते हैं। राजनगर विधानसभा में कुल 2,72,110 मतदाता हैं, जिनमें 1,44,831 पुरुष और 1,27,268 महिलाएं शामिल हैं। यही समीकरण तय करेगा कि 2025 में भाजपा की जीत का सिलसिला जारी रहेगा या राजद कोई नई रणनीति के साथ वापसी करेगी।
राजनगर क्षेत्र न केवल राजनीति बल्कि संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। यह इलाका मिथिला पेंटिंग और मधुबनी कला के लिए विख्यात है। यही वजह है कि यहां का चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का प्रतीक नहीं, बल्कि क्षेत्रीय पहचान और सामाजिक समीकरणों का प्रतिबिंब भी माना जाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा यदि पासवान और अति पिछड़ा वर्ग के मतों को एकजुट रखने में सफल रही तो उसका पलड़ा भारी रहेगा, जबकि राजद को यादव, मुसलमान और दलित समीकरण के सहारे बढ़त बनाने की रणनीति अपनानी होगी। इस बार के चुनाव में राजनगर की लड़ाई सिर्फ दो दलों के बीच नहीं बल्कि जातीय समीकरण बनाम विकास के एजेंडे की भी होगी।






















