बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच मधुबनी जिले की फुलपरास विधानसभा सीट (Phulparas Vidhansabha Seat) पर सभी राजनीतिक दलों की निगाहें टिकी हुई हैं। निर्वाचन क्षेत्र संख्या 39 यानी फुलपरास, झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और अपने लंबे राजनीतिक इतिहास, जातीय समीकरणों और महिला नेतृत्व की मौजूदगी के लिए जाना जाता है। यह सीट बिहार की राजनीति में इसलिए भी खास है क्योंकि यहां कई बार नए प्रयोग हुए हैं, जिसने राज्य की राजनीति को अलग दिशा दी।
चुनावी इतिहास
फुलपरास विधानसभा का चुनावी सफर 1951 से शुरू हुआ। पहले ही चुनाव में कांग्रेस के काशीनाथ मिश्रा ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1957 और 1962 में कांग्रेस ने अपनी पकड़ बनाए रखी और रसिक लाल यादव विधायक बने। 1967 में समीकरण बदले और एसएसपी के डी.एल. मंडल ने कांग्रेस का दबदबा तोड़ दिया। यही से फुलपरास ने यह दिखा दिया कि यहां मतदाता केवल पार्टी नहीं बल्कि उम्मीदवार की साख और जातीय संतुलन को देखकर फैसला करते हैं।
इस सीट का सबसे खास पहलू महिला नेतृत्व का उदय रहा। 1985 में हेमलता यादव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार विधायक चुनी गईं और यह फुलपरास की पहली महिला प्रतिनिधि बनीं। इसके बाद जेडीयू की गुलजार देवी ने 2010 और 2015 में लगातार जीत दर्ज की। 2015 के चुनाव में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी रामसुंदर यादव को शिकस्त दी। गुलजार देवी को 64,368 वोट मिले जबकि रामसुंदर यादव को 50,953 वोट ही हासिल हुए।
2020 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड ने एक बार फिर जीत का परचम लहराया। इस बार जेडीयू की शीला कुमारी ने कांग्रेस प्रत्याशी कृपानाथ पाठक को 10,966 वोटों के अंतर से हराया। शीला कुमारी को 75,116 वोट मिले, जबकि कृपानाथ पाठक को 64,150 वोटों पर संतोष करना पड़ा। इससे स्पष्ट है कि फुलपरास में जेडीयू का संगठनात्मक ढांचा मजबूत रहा है और महिला प्रत्याशियों ने लगातार सफलता पाई है।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरणों पर नजर डालें तो यादव और ब्राह्मण इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। दोनों समुदाय मिलकर 30 प्रतिशत से ज्यादा वोटर हैं। इनके अलावा लगभग 10 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता भी यहां के चुनावी परिणाम को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि बड़े दल अपने उम्मीदवार चयन में जातीय और धार्मिक संतुलन का विशेष ध्यान रखते हैं। कुल 2,81,814 पंजीकृत मतदाताओं में 1,47,518 पुरुष और 1,34,290 महिलाएं शामिल हैं।
मधुबनी विधानसभा चुनाव 2025: मिथिला की पहचान वाली सीट पर किसका रहेगा दबदबा?
फुलपरास विधानसभा को बिहार के पिछड़े इलाकों में गिना जाता है, जहां बुनियादी ढांचे, शिक्षा और रोजगार के सवाल हर चुनावी बहस का हिस्सा होते हैं। यही वजह है कि विकास और जातीय समीकरण मिलकर इस सीट के नतीजे तय करते हैं। 2025 में यहां मुकाबला और दिलचस्प होने वाला है क्योंकि जेडीयू अपनी पकड़ बनाए रखना चाहेगी, जबकि आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन अपनी वापसी की कोशिश करेंगे। भाजपा भी इस सीट पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कवायद में जुटी है।






















