बिहार के अररिया जिले की रानीगंज विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 47) Raninganj Vidhansabha हमेशा से राजनीतिक दलों के लिए अहम रही है। 1957 में गठन के बाद से यह सीट राजनीतिक दृष्टि से कई उतार-चढ़ाव देख चुकी है। 1962 से अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित यह सीट कई दिग्गज नेताओं का गढ़ रही है। कांग्रेस के राम नारायण मंडल से लेकर डूमर लाल बैठा, जमुना प्रसाद राम और शांति देवी जैसे नेताओं ने यहां से जीत दर्ज कर बिहार की राजनीति में अपनी पहचान बनाई। तीनों मंत्री पद तक पहुंचे और इस क्षेत्र का नाम राज्य की सियासत में मजबूती से दर्ज कराया।
चुनावी इतिहास
अब तक इस सीट पर 15 बार चुनाव हो चुका है। इसमें कांग्रेस ने सबसे अधिक 5 बार जीत हासिल की है, लेकिन 1985 के बाद से यह सीट उसके हाथ से फिसली हुई है। भाजपा ने 3 बार जीत दर्ज की है और रामजी दास ऋषिदेव यहां पार्टी के मजबूत चेहरों में गिने जाते रहे हैं। जदयू ने भी 2 बार जीत दर्ज कर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की। इसके अलावा जनता पार्टी, राजद और जदयू ने 1-1 बार जीत हासिल की है, जबकि दो बार निर्दलीय प्रत्याशी भी विजयी रहे हैं। मौजूदा समय में यह सीट जदयू के अचमित ऋषिदेव के कब्जे में है, जिन्होंने लगातार दो बार जीत दर्ज की है।
Narpatganj Vidhan Sabha : मुस्लिम-यादव समीकरण में क्या भाजपा दोहराएगी जीत या बदलेगा खेल?
2015 का चुनाव यहां बेहद रोचक रहा, जब जदयू के अचमित ऋषिदेव ने भाजपा उम्मीदवार रामजी दास ऋषिदेव को लगभग 15 हजार वोटों के अंतर से हराया। उस चुनाव में भाजपा और जदयू अलग-अलग मैदान में थे। वहीं 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में अचमित ऋषिदेव ने राजद के अविनाश मंगलम ऋषिदेव को केवल 2304 वोटों के अंतर से शिकस्त दी। यह बेहद करीबी मुकाबला था, जिसने साफ कर दिया कि यहां मुकाबला हर चुनाव में त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय हो सकता है।
जातिगत समीकरण
रानीगंज विधानसभा की राजनीति पूरी तरह जातीय समीकरणों पर आधारित रही है। यहां रविदास और पासवान वोटरों का बड़ा दबदबा है, जबकि मुस्लिम मतदाता भी परिणाम को निर्णायक बना सकते हैं। यही वजह है कि सभी दल इस समुदाय को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ते। 2011 की जनगणना के अनुसार, अररिया जिले की कुल आबादी करीब 28 लाख है, जबकि रानीगंज विधानसभा की जनसंख्या लगभग 4.8 लाख है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले इस इलाके में धान, मक्का और जूट प्रमुख फसलें हैं। किसान वर्ग की समस्याएं और रोजगार का मुद्दा हर बार चुनावी रैलियों का प्रमुख हिस्सा बनता है।
2025 के चुनाव को देखते हुए यहां का राजनीतिक माहौल एक बार फिर दिलचस्प होता नजर आ रहा है। भाजपा जहां पुराने आधार को मजबूत करने की कोशिश करेगी, वहीं राजद मुस्लिम और दलित वोट बैंक को साधने की रणनीति पर काम करेगी। जदयू के अचमित ऋषिदेव लगातार तीसरी बार जीत दर्ज करने के इरादे से मैदान में उतरेंगे, लेकिन एंटी-इनकम्बेंसी और छोटे मार्जिन से मिली पिछली जीत उनके लिए चुनौती भी साबित हो सकती है। कांग्रेस की स्थिति फिलहाल कमजोर है, लेकिन यदि विपक्षी गठबंधन में सही रणनीति बनी तो समीकरण बदल सकते हैं।






















