फारबिसगंज विधानसभा सीट, निर्वाचन क्षेत्र संख्या 48 (Forbesganj Vidhansabha) बिहार की राजनीति में बेहद अहम मानी जाती है। यह सीट अररिया जिले के अंतर्गत आती है और लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ मानी जाती रही है। हालांकि, 1985 के बाद से कांग्रेस यहां जीत का स्वाद नहीं चख सकी। इसके बाद से धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी ने इस क्षेत्र में अपनी जड़ें मजबूत कीं और 2005 से लगातार यह सीट बीजेपी के पास है। आज यह कहना गलत नहीं होगा कि फारबिसगंज बीजेपी का एक सुरक्षित किला बन चुका है।
चुनावी इतिहास
1952 से अब तक इस सीट पर 15 बार मुख्य विधानसभा चुनाव और 2 बार उपचुनाव हो चुके हैं। इन चुनावों में कांग्रेस 9 बार विजयी रही, जबकि बीजेपी ने अब तक 6 बार अपना परचम लहराया है। दिलचस्प बात यह है कि 1990 के बाद से बीजेपी इस सीट पर 6 बार जीत हासिल कर चुकी है और 2005 से अब तक लगातार चार बार जनता का भरोसा उसके पक्ष में गया है।
2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार विद्या सागर केसरी ने आरजेडी प्रत्याशी कीर्तियानंद बिस्वास को करारी शिकस्त दी थी। केसरी को उस चुनाव में 85,929 वोट (46.21%) मिले, जबकि कीर्तियानंद बिस्वास को 60,691 वोट (32.64%) हासिल हुए। तीसरे स्थान पर जाप (लोकtantrik) के जाकिर हुसैन रहे, जिन्हें करीब 18,894 वोट मिले, जबकि बीएसपी के लक्ष्मी नारायण चौथे स्थान पर रहे।
इसके बाद 2020 के चुनाव में विद्या सागर केसरी ने दोबारा जीत दर्ज की। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी जाकिर हुसैन से हुआ और केसरी ने 1,97,02 मतों के अंतर से जीत हासिल की। उन्हें कुल 1,02,212 वोट मिले, जबकि जाकिर हुसैन को 82,510 वोटों से संतोष करना पड़ा।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरण पर गौर किया जाए तो फारबिसगंज विधानसभा में मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में मौजूद हैं और उन्हें यहां की राजनीति में निर्णायक माना जाता है। हालांकि, ब्राह्मण, राजपूत और यादव समुदाय के वोटर भी इस सीट की चुनावी तस्वीर को प्रभावित करते हैं। 2015 के चुनाव आंकड़े बताते हैं कि इस विधानसभा क्षेत्र में 1,86,032 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें 53.15 प्रतिशत पुरुष और 46.84 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं। अररिया जिले की 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल आबादी 28,11,569 थी, जिसमें फारबिसगंज का सामाजिक समीकरण हमेशा से चुनावी राजनीति को प्रभावित करता रहा है।
आज स्थिति यह है कि जहां कभी कांग्रेस का परचम लहराता था, वहां अब बीजेपी ने लगातार चार बार अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस या आरजेडी जैसे विपक्षी दल यहां की राजनीति में वापसी कर पाएंगे, या फिर बीजेपी अपना यह किला और मजबूत करेगी।






















