बिहार की राजनीति में पूर्णिया विधानसभा सीट Purnia Vidhan Sabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 62) हमेशा सुर्खियों में रही है। पूर्णिया जिला मुख्यालय की यह हाई प्रोफाइल सीट न सिर्फ पार्टी समीकरणों का केंद्र रही है, बल्कि यहां के चुनावी नतीजे पूरे सीमांचल क्षेत्र के राजनीतिक रुझान को प्रभावित करते हैं। 1969 के बाद से कांग्रेस इस सीट पर जीत का स्वाद नहीं चख सकी है, जबकि बीजेपी ने लगातार मजबूत पकड़ बनाकर यहां अपना दबदबा बनाए रखा है।
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पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें 3 उपचुनाव भी शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) यहां सबसे आगे रही है और 6 बार जीत दर्ज की है। कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (MCP) ने पांच-पांच बार जीत हासिल की, जबकि लोक जनशक्ति पार्टी (LJP), जनता पार्टी और नेशनल कांग्रेस पार्टी (NCP) ने एक-एक बार जीत दर्ज की है। यह आंकड़े बताते हैं कि इस सीट पर सत्ता का समीकरण समय-समय पर बदलता रहा है, लेकिन 2000 के बाद से भाजपा लगातार मजबूत रही है।
चुनावी इतिहास
राजनीतिक इतिहास पर नज़र डालें तो 1980 से 1995 तक CPM के अजीत सरकार का इस सीट पर गहरा असर रहा। 1998 में उनकी हत्या ने पूरे राज्य की राजनीति को हिला दिया था। इसके बाद उनकी पत्नी माधवी सरकार ने उपचुनाव में जीत दर्ज कर विरासत को आगे बढ़ाया। 2000 से 2010 तक बीजेपी नेता राज किशोर केसरी ने यहां लगातार जीत हासिल की, लेकिन 2011 में उनकी हत्या ने राजनीतिक माहौल को और जटिल बना दिया। उपचुनाव में बीजेपी की किरण देवी ने जीत हासिल की और पार्टी का दबदबा कायम रखा।
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2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विजय कुमार खेमका ने कांग्रेस की इंदु सिन्हा को करीब 32,815 वोटों से हराया। वहीं, 2020 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार विजय कुमार खेमका ने फिर से कांग्रेस की इंदु सिन्हा को शिकस्त दी और 32,154 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। खेमका को कुल 97,757 वोट मिले, जबकि इंदु सिन्हा को 65,603 वोट मिले। लगातार दो बार कांग्रेस की हार से यह स्पष्ट हो गया कि पूर्णिया में भाजपा की पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां मुस्लिम और यादव मतदाता परंपरागत रूप से राजद और कांग्रेस के लिए अहम रहे हैं, लेकिन भाजपा ने अपने पक्ष में ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) और सवर्ण जातियों को साधकर समीकरण बदल दिया है। ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत समुदाय बीजेपी के स्थायी वोट बैंक के रूप में सामने आते हैं। 2020 के चुनाव में कुल 3,06,984 मतदाताओं में से पुरुष मतदाता 1,61,046 और महिला मतदाता 1,45,938 थीं। महिला वोटरों की बढ़ती भागीदारी ने भी चुनावी तस्वीर को प्रभावित किया।
पूर्णिया विधानसभा सीट पर होने वाला अगला चुनाव बेहद दिलचस्प रहने वाला है। एक ओर कांग्रेस और राजद अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की रणनीति बना रहे हैं, वहीं बीजेपी विकास और जातीय संतुलन के सहारे अपनी जीत की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहती है। सीमांचल की सियासत का यह केंद्र आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में फिर से राजनीतिक हलचल का बड़ा कारण बनेगा।






















