कटिहार जिले की प्राणपुर विधानसभा सीट Pranpur Vidhan Sabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 66) बिहार की सियासत में हमेशा अहम मानी जाती रही है। 1977 में अस्तित्व में आने के बाद से इस सीट पर कई राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी जीत का स्वाद चखा है। जनता पार्टी, कांग्रेस, जनता दल, राजद और भाजपा – सभी दलों ने समय-समय पर इस सीट पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। यही कारण है कि प्राणपुर का चुनावी इतिहास बेहद विविधतापूर्ण और उतार-चढ़ाव से भरा रहा है।
चुनावी इतिहास
प्राणपुर से पहले विधायक जनता पार्टी के महेंद्र नारायण यादव बने थे। हालांकि, 1980 और 1985 में कांग्रेस ने मोहम्मद शकुर के नेतृत्व में लगातार दो बार जीत दर्ज की। इसके बाद 1990 और 1995 में महेंद्र नाथ यादव ने जनता दल की टिकट पर यहां से जीत हासिल की। 2000 में भाजपा के बिनोद कुमार सिंह ने कांग्रेस को पटखनी दी और यहीं से भाजपा की पकड़ इस सीट पर मजबूत होनी शुरू हुई। बिनोद कुमार सिंह तीन बार विधायक बने और 2010 तथा 2015 में भी जीत हासिल कर भाजपा का प्रभाव बनाए रखा।
Balrampur Vidhan Sabha: महबूब आलम का गढ़ या बदलते समीकरणों का नया रणक्षेत्र?
2005 के दोनों चुनाव आरजेडी के महेंद्र नारायण यादव ने जीते, लेकिन 2010 में बिनोद कुमार सिंह की वापसी ने भाजपा के पक्ष में समीकरण बदल दिए। 2015 में उन्होंने एनसीपी उम्मीदवार को हराकर सीट को फिर भाजपा की झोली में डाल दिया।
2020 का चुनाव भाजपा के लिए एक भावनात्मक मोड़ था। बिनोद कुमार सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी निशा सिंह मैदान में उतरीं और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी तौकीर आलम को 2,972 वोटों के अंतर से हराया। निशा सिंह को 79,974 वोट मिले, जबकि आलम को 77,002 वोट मिले। इस जीत ने यह साबित कर दिया कि प्राणपुर में भाजपा की राजनीतिक विरासत अब भी कायम है और परिवारवाद की राजनीति ने भी यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जातीय समीकरण
प्राणपुर की राजनीति को समझने के लिए जातीय समीकरण बेहद अहम हैं। इस क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, जिनकी संख्या सबसे ज्यादा है। दलित, यादव और रविदास मतदाता भी चुनावी गणित में अहम योगदान करते हैं। साथ ही, कुर्मी और अन्य ओबीसी वर्ग के वोटर भी परिणामों को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि हर चुनाव में दल इन जातीय समीकरणों को साधने के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाते हैं।
2024 के आंकड़ों के अनुसार प्राणपुर विधानसभा में कुल मतदाता संख्या 3,26,204 है, जिसमें 1,70,382 पुरुष और 1,55,817 महिला मतदाता शामिल हैं। इस बड़ी संख्या में मुस्लिम और दलित वोटों का ध्रुवीकरण किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। भाजपा जहां अपने परंपरागत वोट बैंक और संगठनात्मक ताकत पर भरोसा कर रही है, वहीं कांग्रेस और राजद इस सीट पर मुस्लिम–यादव समीकरण को साधने में जुटी हैं।
आने वाले 2025 के चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रख पाएगी या विपक्षी दल गठजोड़ कर मुस्लिम और यादव वोटों को एकजुट कर नया राजनीतिक समीकरण खड़ा करेंगे। प्राणपुर विधानसभा का परिणाम सिर्फ कटिहार जिले ही नहीं बल्कि पूरे सीमांचल की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।






















