बिहार की राजनीति में कोढ़ा विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 69) एक ऐसी सीट है, जिसका इतिहास बेहद अहम रहा है। कटिहार जिले में स्थित यह सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है। इस क्षेत्र की राजनीति हमेशा से ही बड़े नेताओं और दलों के लिए ताकत और चुनौती दोनों रही है। कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता भोला पासवान शास्त्री यहां से लगातार तीन बार विधायक बने और बिहार के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे। वहीं, हाल के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली है।
चुनावी इतिहास
कोढ़ा की राजनीतिक विरासत की बात करें तो यह सीट कई दशकों से उतार-चढ़ाव का गवाह रही है। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर सीताराम दास की जीत ने इस सीट की राजनीति को नया मोड़ दिया। 1980 और 1985 में कांग्रेस के विश्वनाथ ऋषि का दबदबा दिखा, लेकिन 1990 और 1995 में जनता दल ने वापसी की। 2000 के चुनाव में बीजेपी के महेश पासवान विजयी रहे, जबकि 2005 में कांग्रेस की सुनीता देवी ने इस पर कब्जा जमाया।
Pranpur Vidhan Sabha: भाजपा का गढ़ या मुस्लिम–यादव समीकरण से बदलेंगे 2025 के चुनावी नतीजे?
2010 और 2015 का चुनाव इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस की टक्कर का गवाह रहा। 2010 में महेश पासवान ने कांग्रेस को हराकर बीजेपी की ताकत दिखाई, लेकिन 2015 में महागठबंधन की प्रत्याशी पूनम कुमारी (पूनम पासवान) ने भाजपा से यह सीट छीन ली। हालांकि, 2020 का चुनाव निर्णायक साबित हुआ, जब भाजपा की कविता पासवान ने कांग्रेस की पूनम कुमारी को 28,943 वोटों से शिकस्त दी। कविता पासवान को 1,04,625 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को 75,682 वोटों पर संतोष करना पड़ा।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की दृष्टि से कोढ़ा सीट बेहद संवेदनशील है। यहां मुस्लिम, यादव, पासवान, रविदास, कुर्मी, कोइरी और ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। करीब 2.47 लाख मतदाताओं (2015 के आंकड़ों के अनुसार) में पुरुषों की संख्या 51.71% और महिलाओं की हिस्सेदारी 48.28% है। यह समीकरण हर चुनाव में दलों की रणनीति तय करने में अहम साबित होता है।
बरारी विधानसभा: बिहार की राजनीति में बदलते समीकरण और ऐतिहासिक जीत-हार का सफर
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कोढ़ा सीट पर मुकाबला और भी दिलचस्प होने वाला है। भाजपा कविता पासवान के दम पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहेगी, वहीं कांग्रेस और महागठबंधन की कोशिश होगी कि पुराने जनाधार को फिर से साधा जाए। कोढ़ा की राजनीति सिर्फ जातीय समीकरण पर नहीं, बल्कि उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि और स्थानीय मुद्दों पर भी टिकी रहती है। यही वजह है कि यह सीट हर बार बिहार की राजनीति का केंद्रबिंदु बन जाती है।






















