मधेपुरा विधानसभा Madhepura Vidhansabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-73) बिहार की राजनीति का वह अहम मैदान है, जहां जातीय समीकरण और राजनीतिक रणनीतियां लगातार करवट बदलती रही हैं। कोसी क्षेत्र के केंद्र में स्थित यह सीट कभी कांग्रेस की मज़बूत पकड़ में थी, लेकिन समय के साथ यह लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी आरजेडी (RJD) का किला बन गई। यहां की राजनीति सिर्फ नेताओं के चेहरे पर नहीं, बल्कि यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण और बदलते सामाजिक समीकरणों पर भी टिकी रही है।
चुनावी इतिहास
अगर अतीत की बात करें तो 1977 में कांग्रेस के जय कृष्ण यादव ने जीत हासिल कर इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व कायम किया। हालांकि, 1980 आते-आते जनता दल ने एंट्री मारी और राधाकांत यादव ने जीत दर्ज की। यही सिलसिला आगे भी जारी रहा—1985 में कांग्रेस ने भोला प्रसाद यादव के जरिए वापसी की, तो 1990 और 1995 में जनता दल ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली।
साल 2000 का विधानसभा चुनाव इस सीट पर आरजेडी के उभार की गवाही देता है, जब राजेंद्र प्रसाद यादव ने जीत दर्ज की। लेकिन 2005 में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने महेंद्र कुमार मंडल को उतारकर आरजेडी को मात दी। हालांकि, 2010 में आरजेडी ने एक बार फिर वापसी करते हुए अपनी पकड़ मजबूत की।
Singheshwar Vidhansabha: बदले समीकरणों में अबकी बार किसके सिर सजेगा ताज?
2015 का चुनाव गठबंधन की राजनीति का बड़ा उदाहरण रहा। इस बार आरजेडी-जेडीयू गठबंधन ने बीजेपी को पीछे छोड़ दिया और आरजेडी के चंद्रशेखर यादव ने बड़ी जीत दर्ज की। वहीं 2020 का चुनाव इस सीट पर आरजेडी की मजबूती को और साफ करता है, जब चंद्रशेखर यादव ने जेडीयू के निखिल मंडल को 15,072 वोटों के अंतर से हराया। दिलचस्प यह रहा कि इस बार पप्पू यादव भी मैदान में थे, लेकिन वे तीसरे स्थान पर सिमट गए।
जातीय समीकरण
मधेपुरा विधानसभा का राजनीतिक गणित समझने के लिए इसके जातीय समीकरण पर नजर डालना जरूरी है। यादव वोटरों की संख्या यहां लगभग 3.3 लाख है, जबकि मुस्लिम मतदाता करीब 1.8 लाख। यही वजह है कि यहां MY समीकरण का प्रभाव हमेशा निर्णायक रहा है। इसके अलावा ब्राह्मण (1.7 लाख), राजपूत (1.1 लाख), दलित (1.1 लाख), कुर्मी-कोयरी (1.25 लाख), मुसहर (1.08 लाख), धानुक (60,000) और कायस्थ (10,000) वोटर भी चुनावी तस्वीर बदलने की क्षमता रखते हैं।
यहां के कुल 3.05 लाख से अधिक मतदाता बिहार की राजनीति की नब्ज़ को समझने का एक अहम पैमाना माने जाते हैं। इनमें पुरुष मतदाता 52.18 फीसदी और महिला मतदाता 47.82 फीसदी हैं। यही समीकरण तय करते हैं कि चुनावी जंग में किसका पलड़ा भारी होगा।
निष्कर्ष
मधेपुरा विधानसभा सीट पर नजर डालें तो यह साफ दिखता है कि यहां की राजनीति सिर्फ पार्टियों की रणनीति से नहीं, बल्कि जातीय समीकरणों और गठबंधनों से तय होती है। यादव-मुस्लिम समीकरण का दबदबा तो कायम है, लेकिन ब्राह्मण, राजपूत और अन्य जातियों की भूमिका भी निर्णायक बनती जा रही है। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आरजेडी अपनी पकड़ बनाए रखती है या एनडीए कोई नया समीकरण गढ़ पाता है।






















