दरभंगा जिले की अलीनगर विधानसभा सीट Alinagar Vidhansabha 2025 (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-81) बिहार की राजनीति में लगातार सुर्खियों में रही है। साल 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर पहली बार 2010 में चुनाव हुए। उस समय से लेकर आज तक यह सीट बिहार के बड़े नेताओं और दलों की रणनीति का अहम हिस्सा रही है।
चुनावी इतिहास
2010 के चुनाव में आरजेडी ने दिग्गज नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी को मैदान में उतारा। उन्होंने जेडीयू के प्रभाकर चौधरी को करीब 14 हजार वोट से मात दी और इस सीट पर राजद का दबदबा स्थापित हुआ। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। 2015 का चुनाव महागठबंधन बनाम एनडीए के बीच लड़ा गया। दिलचस्प बात यह रही कि सीट बंटवारे में सहमति न बनने के कारण अलीनगर पर आरजेडी और जेडीयू दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे। परिणाम फिर वही रहा—सिद्दीकी ने जीत दर्ज की, लेकिन इस बार जीत का अंतर घटकर महज 5 हजार वोट तक सिमट गया। यह संकेत था कि इस सीट पर मुकाबला कड़ा हो रहा है।
Gaurabauram Vidhan Sabha 2025: जातीय समीकरण और राजनीतिक उठापटक से बनी बिहार की वीआईपी सीट
2020 का विधानसभा चुनाव अलीनगर की राजनीति में बड़ा मोड़ लेकर आया। एनडीए में शामिल वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) को यह सीट दी गई। वीआईपी उम्मीदवार मिश्री लाल यादव ने राजद प्रत्याशी बिनोद मिश्रा को 3101 वोटों से हराकर पहली बार इस सीट पर कब्जा जमाया। मिश्री लाल यादव को 61,082 वोट मिले, जबकि बिनोद मिश्रा को 57,654 वोट पर संतोष करना पड़ा। यहां आरजेडी को 36.66% और वीआईपी को 38.62% वोट मिले। तीसरे नंबर पर जन अधिकार पार्टी के संजय कुमार सिंह रहे। इस नतीजे ने यह साफ कर दिया कि अलीनगर सीट पर अब मुकाबला बहुकोणीय हो गया है और जातीय समीकरण निर्णायक भूमिका निभाने लगे हैं।
जातीय समीकरण
जातीय संतुलन की बात करें तो अलीनगर में मुस्लिम, यादव और ब्राह्मण मतदाता बड़ी संख्या में मौजूद हैं। वहीं, राजपूत, कोइरी, रविदास और पासवान मतदाताओं की भी अहम भूमिका है। कुल 2.66 लाख मतदाताओं में 1.39 लाख पुरुष (52.1%) और 1.27 लाख महिला (47.7%) हैं। पिछले चुनावों में यहां औसत मतदान 47% से 55% के बीच रहा है।
2025 के चुनाव की ओर देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अलीनगर सीट पर हर दल की रणनीति जातीय समीकरणों और स्थानीय मुद्दों पर टिकी होगी। राजद अपनी परंपरागत पकड़ और मुस्लिम-यादव समीकरण को साधने की कोशिश करेगा, वहीं एनडीए की ओर से वीआईपी या जेडीयू-बीजेपी के किसी उम्मीदवार पर दांव लगाया जा सकता है। साथ ही छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार भी मुकाबले को और दिलचस्प बना सकते हैं।






















