GaiGhat Vidhan Sabha Seat: बिहार की राजनीति में गायघाट विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 88) हमेशा से अहम मानी जाती रही है। यह सीट मुजफ्फरपुर जिले में स्थित है और बागमती नदी के किनारे बसा यह इलाका लंबे समय से सत्ता के उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा है। गायघाट के चुनावी इतिहास पर नज़र डालें तो यहां कांग्रेस, आरजेडी, जेडीयू और निर्दलीय प्रत्याशी तक अपनी-अपनी छाप छोड़ चुके हैं। यही वजह है कि यह सीट हर बार नए समीकरण गढ़ने के लिए चर्चा में रहती है।
चुनावी इतिहास
1985 में कांग्रेस के रामचंद्र पासवान ने जीत हासिल की थी, वहीं 1990 में निर्दलीय उम्मीदवार महेश्वर यादव ने सबको चौंकाते हुए विजय प्राप्त की। इसके बाद 1995 में महेश्वर यादव ने जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज की। 2000 में यह सीट जेडीयू के खाते में गई जब वीरेंद्र सिंह ने विजय हासिल की। 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आरजेडी के निरंजन राय ने जेडीयू के महेश्वर प्रसाद यादव को 7566 वोटों से मात दी थी। उस चुनाव में निरंजन राय को 59,778 वोट मिले, जबकि महेश्वर यादव को 52,212 वोट हासिल हुए। आरजेडी को कुल 32.92% और जेडीयू को 28.75% वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर लोकजनशक्ति पार्टी की कोमल सिंह रहीं, जिन्हें 36,749 वोट प्राप्त हुए।
जातीय समीकरण
गायघाट की राजनीति का सबसे बड़ा आधार जातीय समीकरण है। इस क्षेत्र में पासवान, भूमिहार, यादव और मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनके बाद राजपूत, ब्राह्मण, कोइरी, कुर्मी और रविदास समुदाय की संख्या भी अच्छी-खासी है। यही कारण है कि हर दल उम्मीदवार चयन से लेकर चुनावी रणनीति तक, इन जातीय समीकरणों को साधने में जुटा रहता है।
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2020 के विधानसभा चुनाव में गायघाट में कुल 3,09,025 मतदाता दर्ज किए गए थे। इनमें 1,63,566 पुरुष, 1,45,111 महिलाएं और 3 तीसरे लिंग के मतदाता शामिल थे। मतदाता संख्या और जातीय संरचना को देखते हुए यह सीट हमेशा राजनीतिक दलों के लिए चुनौती और अवसर दोनों पेश करती रही है।
आने वाले चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आरजेडी अपनी बढ़त बनाए रख पाएगी या जेडीयू और अन्य दल समीकरणों को साधकर बाज़ी पलट देंगे। गायघाट का इतिहास बताता है कि यहां मतदाता बदलाव करने से हिचकते नहीं और यही इसकी असली राजनीतिक पहचान है।






















