Zeeradei Vidhan Sabha: बिहार के सिवान जिले में स्थित जीरादेई विधानसभा क्षेत्र (संख्या-106) राज्य की उन चंद सीटों में से एक है, जहां की राजनीतिक परंपरा स्थायित्व की नहीं, बदलाव की रही है। यह सीट न तो किसी पार्टी का गढ़ मानी जाती है, न ही किसी नेता का किला। यहां की राजनीति की विशेषता यह रही है कि जनता हर चुनाव में अपने जनप्रतिनिधि को बदलकर एक नया संदेश देती है।
चुनावी इतिहास
पिछले दो दशकों में जीरादेई ने कई बार अपना नेतृत्व बदला है। 2000 और फरवरी 2005 में इस सीट पर आरजेडी के अजाजुल हक ने जीत दर्ज की। इसके बाद अक्टूबर 2005 में जेडीयू के श्याम बहादुर सिंह, 2010 में बीजेपी की आशा देवी, और 2015 में जेडीयू के रमेश सिंह कुशवाहा विधायक बने। लेकिन फिर 2020 में जनता ने बड़ा उलटफेर करते हुए इस सीट पर वामपंथी झंडा बुलंद कर दिया और भाकपा माले के अमरजीत कुशवाहा ने जीत हासिल की।
Hathua Vidhansabha 2025: लालू यादव के गांव वाली सीट पर इस बार किसका होगा कब्जा?
2015 में रमेश सिंह कुशवाहा ने बीजेपी की आशा देवी को 6091 वोटों से हराया था, जबकि 2020 में अमरजीत कुशवाहा ने जेडीयू की कमला सिंह को भारी अंतर (25510 वोटों से) हराकर सीट पर कब्जा जमाया। यह साफ संकेत है कि जीरादेई में मतदाता न तो किसी पार्टी को स्थायी समर्थन देते हैं और न ही जातिगत समीकरण ही यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
जातीय समीकरण
हालांकि, जीरादेई में जातीय आधार को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। इस सीट पर मुस्लिम, यादव, ब्राह्मण और राजपूत समुदायों की अच्छी खासी संख्या है, जो कुल मतदाताओं का करीब 42% बनती है। यही वजह है कि हर दल अपने प्रत्याशी चयन में इन जातियों के समीकरण को ध्यान में रखता है।
2011 की जनगणना के मुताबिक, इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 367965 है, जिसमें से 93.6% ग्रामीण और केवल 6.4% शहरी आबादी है। एससी वर्ग की हिस्सेदारी 10.93% और एसटी वर्ग की 4.14% है। 2019 की मतदाता सूची के अनुसार यहां 273028 मतदाता हैं, जो 2025 के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
2025 की तैयारी
अब जब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट है, तो सभी राजनीतिक दलों की नजर एक बार फिर जीरादेई पर टिक गई है। क्या अमरजीत कुशवाहा इस बार अपनी सीट बचा पाएंगे या फिर कोई नया चेहरा उभरेगा? जातीय समीकरण, वोटिंग ट्रेंड्स और दलों की रणनीति इस चुनाव को रोचक बनाएंगे। Zeeradei में हर चुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं होता, यह बिहार की बदलती राजनीति का संकेत भी होता है।






















