Darauili Vidhansabha 2025: सिवान जिले की दरौली विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 107) बिहार की राजनीति में हमेशा से एक खास पहचान रखती है। यह सीट जितनी पुरानी है, उतनी ही दिलचस्प राजनीतिक कहानियों से भरी हुई है। 1951 में पहले विधानसभा चुनाव से शुरू हुई इस सीट की राजनीतिक यात्रा कांग्रेस की जीत से आरंभ हुई थी। रामाणय शुक्ला ने कांग्रेस के लिए जीत की नींव रखी थी, लेकिन आज की तस्वीर देखें तो कांग्रेस इस क्षेत्र से पूरी तरह हाशिए पर जा चुकी है। 1980 में इंदिरा लहर के दौरान मिली जीत कांग्रेस की आखिरी बड़ी सफलता साबित हुई, उसके बाद पार्टी का यहां से लगभग सफाया हो गया।
चुनावी इतिहास
दरौली में असली मुकाबला अक्सर वामपंथी ताकतों और भाजपा-आरजेडी जैसी मुख्यधारा की पार्टियों के बीच ही रहा है। सीपीआई (एमएल) यानी भाकपा (माले) ने इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाई है। चार बार यहां जीत दर्ज कर चुकी इस पार्टी ने वर्तमान में भी इस सीट को अपने कब्जे में रखा है। भाकपा माले के सत्यदेव राम ने लगातार दो बार इस सीट से जीत दर्ज कर यह साबित किया है कि ग्रामीण इलाकों में वामपंथ की जड़ें अब भी गहरी हैं।
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वहीं भाजपा और आरजेडी को भी इस सीट से एक-एक बार जीत हासिल हो चुकी है, जबकि जनता दल ने भी अपने समय में यहां दो बार जीत दर्ज की थी। खास बात यह है कि नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू अब तक यहां खाता नहीं खोल सकी है, जबकि जनता दल के शिवशंकर यादव दो बार विधायक बने और तीन बार उपविजेता रहे।
2015 में सत्यदेव राम ने भाजपा के रामायण मांझी को कड़ी टक्कर देते हुए 9500 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी। इसके बाद 2020 के चुनाव में एक बार फिर यही मुकाबला देखने को मिला, लेकिन इस बार अंतर और भी बढ़ गया। सत्यदेव राम ने भाजपा प्रत्याशी को 12,119 वोटों से हराकर जीत पक्की कर ली।
जातीय समीकरण
दरौली सीट के जातीय समीकरण इसे और खास बनाते हैं। रविदास समाज यहां निर्णायक भूमिका में है, लेकिन मुस्लिम और यादव मतदाता भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। पूरे क्षेत्र की ग्रामीण पृष्ठभूमि चुनावी राजनीति को और दिलचस्प बनाती है। 2019 की मतदाता सूची के अनुसार, यहां 3,09,753 मतदाता दर्ज हैं और 319 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 14.49 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की संख्या 4.54 फीसदी है।
इस सीट पर हर चुनाव एक नई कहानी लिखता है—जहां पुराने समीकरण टूटते हैं और नए गठजोड़ बनते हैं। यही वजह है कि दरौली विधानसभा सीट बिहार की राजनीति का वह अखाड़ा है, जहां हर बार परिणाम राज्य की राजनीति को नई दिशा देने की क्षमता रखते हैं।






















