Garhka Vidhansabha 2025: सारण ज़िले की गरखा विधानसभा सीट (संख्या-119) बिहार की उन आरक्षित सीटों में से है, जहाँ का हर चुनाव राजनीतिक हलचलों का केंद्र बनता है। अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित यह सीट सामाजिक समीकरण और लंबे राजनीतिक इतिहास के कारण हमेशा से सुर्खियों में रही है।
चुनावी राजनीति
1957 में अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक 15 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस ने शुरुआती दौर में पाँच बार जीत दर्ज की, लेकिन 1985 के बाद से उसे यहाँ सफलता नहीं मिली। निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी तीन बार अपनी पकड़ बनाई, जबकि भाजपा और राजद दोनों को यहाँ दो-दो बार जीत हासिल हुई है। जनता दल, जनता पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को भी एक-एक बार सफलता मिली।
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गरखा विधानसभा की राजनीति पर सबसे अधिक असर राजद और उसके नेताओं का रहा है। 2015 के चुनाव में राजद प्रत्याशी मुनेश्वर चौधरी ने भाजपा के ज्ञान चंद्र मांझी को 39,883 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। चौधरी पाँचवीं बार विधायक बने और उनका राजनीतिक सफर जेपी आंदोलन से शुरू हुआ था। वे बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके थे। 2020 में भी राजद ने अपनी पकड़ मजबूत रखते हुए इस सीट पर जीत दर्ज की। राजद उम्मीदवार सुरेंद्र राम ने भाजपा के ज्ञान चंद्र मांझी को 9,937 वोटों से शिकस्त दी।
जातीय समीकरण
गरखा विधानसभा सीट का सबसे बड़ा आधार यहाँ का जातीय समीकरण है। रविदास और पासवान जातियों के मतदाता यहाँ निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा मुस्लिम वोटर भी इस सीट पर परिणाम तय करने में अहम साबित होते हैं। यहाँ की कुल आबादी लगभग 4,26,639 है और पूरी तरह ग्रामीण है। अनुसूचित जाति की आबादी का प्रतिशत 13.69 है, जो सीधे तौर पर चुनावी समीकरण को प्रभावित करता है।
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गरखा की राजनीति में जहाँ राजद का दबदबा साफ दिखता है, वहीं भाजपा और कांग्रेस लगातार चुनौती पेश करने की कोशिश करती रही हैं। भाजपा के ज्ञान चंद्र मांझी ने 2005 और 2010 में जीत दर्ज कर यह साबित किया था कि समीकरण कभी भी पलट सकते हैं। 2025 के चुनावों में भी गरखा सीट पर वही दल जीत दर्ज करेगा जो जातीय समीकरण को अपने पक्ष में साधने में सफल होगा।






















