Amanour Vidhansabha 2025: अमनौर विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-120) बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से एक है, जहां राजनीतिक समीकरण लगातार करवट लेते रहे हैं। सारण जिले की यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई और इसके बाद से अब तक केवल तीन बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि यहां हर बार परिणाम ने सियासत के समीकरणों को नई दिशा दी है।
चुनावी इतिहास
2010 के पहले चुनाव में जेडीयू के कृष्ण कुमार मंटू ने निर्दलीय प्रत्याशी सुनील कुमार को 10 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। लेकिन 2015 आते-आते समीकरण बदल गए और बीजेपी के शत्रुघन तिवारी ने जेडीयू के ही मंटू को हराकर सीट अपने नाम कर ली। इस चुनाव में दोनों दलों के बीच जीत-हार का अंतर सिर्फ 4 फीसदी रहा था।
arhka Vidhansabha 2025: जातीय समीकरण और राजनीतिक इतिहास से तय होगी 2025 की बाज़ी
2020 में एक बार फिर मुकाबला दिलचस्प हुआ। भाजपा से इस बार कृष्ण कुमार मंटू मैदान में थे और उन्होंने राजद प्रत्याशी सुनील कुमार राय को 3681 वोटों से मात दी। मंटू को 63,316 वोट यानी 42.29% वोट शेयर मिला, जबकि सुनील कुमार राय को 59,635 वोट (39.83%) मिले। कुल मिलाकर इस बार लगभग 56.77% मतदान दर्ज हुआ।
जातीय समीकरण
अमनौर की राजनीति में यादव, मुस्लिम और राजपूत वोटरों का वर्चस्व रहा है, लेकिन यहां ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कुल आबादी में यादव-राजपूत और ब्राह्मण वोटरों की हिस्सेदारी करीब 35% मानी जाती है। इसके अलावा अनुसूचित जाति समुदाय की आबादी लगभग 12.74% है। पूरी तरह ग्रामीण इलाका होने की वजह से यहां के मुद्दे विकास, बुनियादी सुविधाओं और जातीय गणित पर केंद्रित रहते हैं।
Chhapra Vidhan Sabha: जेपी और लालू की विरासत वाली सीट पर 2025 की सियासत गर्म
पिछले तीन चुनावों में अमनौर सीट ने साबित किया है कि यहां मतदाता किसी एक पार्टी के स्थायी समर्थक नहीं हैं। जेडीयू, बीजेपी और राजद सभी को मौका मिला है। यही वजह है कि इस सीट पर आगामी विधानसभा चुनाव में मुकाबला और भी दिलचस्प हो सकता है। भाजपा के लिए यह सीट पकड़ मजबूत करने का मौका है, वहीं राजद और जेडीयू इसे अपने खोए जनाधार की पुनर्प्राप्ति के रूप में देखेंगे।






















