Morwa Vidhansabha 2025: समस्तीपुर जिले की मोरवा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 135) बिहार की उन सीटों में गिनी जाती है, जहां हर चुनाव में जातीय समीकरण और राजनीतिक गठजोड़ निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर पहली बार 2010 में चुनाव हुआ था। मोरवा प्रखंड, ताजपुर प्रखंड की 12 पंचायतें और पटोरी प्रखंड की 8 पंचायतों को जोड़कर इस क्षेत्र का गठन किया गया था।
चुनावी इतिहास
2010 में जेडीयू के बैधनाथ सहनी ने यहां जीत दर्ज की और मोरवा विधानसभा का पहला विधायक बनने का गौरव हासिल किया। उन्होंने आरजेडी उम्मीदवार अशोक सिंह को मात दी थी। 2015 में जब जेडीयू महागठबंधन का हिस्सा बनी, तब विद्यासागर निषाद उम्मीदवार बने और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी सुरेश राय को बड़े अंतर से हराया।
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हालांकि, 2020 का चुनाव मोरवा की राजनीति में बड़ा बदलाव लेकर आया। इस बार आरजेडी के रणविजय साहू ने जेडीयू के विद्या सागर निषाद को 10,671 मतों के अंतर से शिकस्त दी। रणविजय साहू को 37.06% वोट मिले, जबकि जेडीयू उम्मीदवार को 30.42% मतों पर संतोष करना पड़ा। एलजेपी के अभय कुमार सिंह भी लगभग 15% वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
जातीय समीकरण
मोरवा की राजनीति को समझने के लिए जातीय गणित बेहद अहम है। यहां सहनी समाज की बड़ी आबादी निर्णायक मानी जाती है। इसके अलावा यादव और मुस्लिम मतदाता मिलकर लगभग 30% तक का प्रभाव रखते हैं। ब्राह्मण और राजपूत भी इस सीट पर हार-जीत का अंतर तय करने में भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि हर पार्टी उम्मीदवार चयन में सामाजिक समीकरणों का गहन अध्ययन करती है।
2011 की जनगणना के अनुसार, इस विधानसभा क्षेत्र की आबादी 3,90,141 है। इनमें अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 18.97% और अनुसूचित जनजाति की केवल 0.04% है। वहीं 2019 की मतदाता सूची के अनुसार यहां 2.55 लाख मतदाता दर्ज हैं।
मोरवा विधानसभा उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यहां हर चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ राज्य और केंद्र की राजनीति का भी सीधा असर देखने को मिलता है। 2025 का चुनाव नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरणों और पिछले नतीजों के आधार पर अपनी रणनीति तय करने में जुट गए हैं।






















