Khagaria Vidhan Sabha 2025: खगड़िया विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 149) बिहार की उन चुनिंदा सीटों में गिनी जाती है, जहां का चुनावी इतिहास बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा है। यह सीट खगड़िया जिले में आती है और यहां पहली बार 1951 में चुनाव हुए थे। तब से लेकर अब तक कुल 17 बार यहां मतदान हो चुका है। इस सीट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां कांग्रेस, जेडीयू, माकपा, लोजपा और भाजपा जैसे दलों के साथ-साथ निर्दलीयों ने भी अपनी-अपनी जीत का परचम लहराया है।
चुनावी इतिहास
अगर हम खगड़िया विधानसभा के पिछले चुनावी समीकरणों पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि यह सीट लंबे समय तक जेडीयू के कब्ज़े में रही। 2005, 2010 और 2015 में लगातार तीन बार जेडीयू की पूनम यादव ने जीत दर्ज की। 2015 के चुनाव में उन्हें 64,767 वोट (46.4%) मिले थे और उन्होंने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के राजेश कुमार को करारी शिकस्त दी थी। लेकिन 2020 के चुनाव ने यहां की राजनीति का पूरा संतुलन बदल दिया। उस बार कांग्रेस उम्मीदवार छत्रपति यादव ने महज 3,000 वोटों के अंतर से पूनम यादव को परास्त कर कांग्रेस को बड़ी सफलता दिलाई। छत्रपति यादव को 46,980 वोट (31.14%) मिले जबकि पूनम यादव को 43,980 वोट (29.15%) ही हासिल हो सके।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो खगड़िया सीट पर यादव और मुस्लिम वोटर सबसे प्रभावी भूमिका निभाते हैं। इनकी संख्या कुल वोटरों का लगभग 20% मानी जाती है। इनके अलावा कुर्मी जाति भी यहां निर्णायक है। यही वजह है कि इस सीट पर हर बार वही प्रत्याशी मजबूत साबित होता है, जो इन समुदायों का भरोसा जीतने में सफल होता है। अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 13.56% और अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी मात्र 0.06% है।
2011 की जनगणना के मुताबिक, खगड़िया विधानसभा की कुल आबादी 3,64,803 है। इनमें 86.46% लोग ग्रामीण इलाकों में और 13.54% शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। ग्रामीण वोटरों की अधिकता इस सीट पर उम्मीदवारों को रणनीति बनाने के लिए मजबूर करती है। यही कारण है कि यहां जातीय समीकरण और ग्रामीण मुद्दे मिलकर जीत-हार का फैसला करते हैं।
अब 2025 के चुनावी समर की ओर बढ़ते हुए सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस यहां अपनी पकड़ बनाए रख पाएगी या जेडीयू अपने खोए हुए गढ़ को फिर से हासिल करेगी। एलजेपी और बीजेपी जैसे दल भी यहां अपनी ताकत झोंकने की तैयारी कर रहे हैं। खगड़िया विधानसभा सीट पर होने वाला मुकाबला न सिर्फ जिले बल्कि पूरे बिहार की राजनीति की दिशा तय करने में अहम साबित हो सकता है।






















