बिहार के भागलपुर जिले की कहलगांव विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 155) अपनी ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्वता के कारण हमेशा चुनावी रणनीतियों का केंद्र रही है। यह सीट कांग्रेस का पारंपरिक गढ़ मानी जाती रही है, लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में हालिया बदलावों ने इसे किसी भी पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
चुनावी इतिहास
कहलगांव सीट पर सबसे पहला चुनाव 1951 में हुआ था, जिसमें कांग्रेस के रामजन्म महतो विजयी रहे। 1967 में कांग्रेस को पहली हार का सामना करना पड़ा, जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) ने उसे पराजित किया। लेकिन इसके बाद कांग्रेस ने लगातार तीन चुनावों में जीत दर्ज कर अपने प्रभुत्व को कायम रखा। हालांकि वर्तमान में यह सीट भाजपा के नियंत्रण में है, जो राज्य की बदलती राजनीतिक दिशा को दर्शाता है।
2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सदानंद सिंह ने लोजपा के नीरज कुमार को लगभग 20 हजार वोटों के अंतर से हराया। सदानंद सिंह को 36.68 फीसदी वोट मिले, जबकि नीरज कुमार को 24.7 फीसदी वोट प्राप्त हुए। इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार पवन यादव को भी 26,510 वोट मिले। इस दौरान कांग्रेस, RJD और JDU के गठबंधन ने मुकाबला किया, जबकि BJP ने LJP और Ralospa के साथ चुनाव में हिस्सा लिया।
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लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव ने कहलगांव का चुनावी परिदृश्य बदल दिया। BJP के पवन कुमार यादव ने कांग्रेस के शुभानंद मुकेश को 42,893 वोटों के बड़े अंतर से हराकर सीट पर कब्जा किया। पवन कुमार यादव को कुल 1,15,538 वोट मिले, जबकि शुभानंद मुकेश केवल 72,645 वोट ही जुटा पाए। यह जीत स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि अब भाजपा ने इस क्षेत्र में अपनी पैठ मजबूत कर ली है।
जातीय समीकरण
कहलगांव विधानसभा क्षेत्र की सामाजिक संरचना भी राजनीतिक रणनीतियों में निर्णायक भूमिका निभाती है। यह सीट मुस्लिम और यादव बाहुल्य है, जो चुनावी नतीजों पर असर डालते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण, कोइरी, रविदास और पासवान जैसे अन्य समुदाय भी पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं। 2025 के चुनाव में इस सीट पर नजरें मुस्लिम-यादव वोट बैंक, पिछली राजनीतिक जीत और भाजपा व कांग्रेस के रणनीतिक समीकरण पर टिकी होंगी। इतिहास और सामाजिक समीकरण को देखते हुए यह सीट बिहार विधानसभा चुनाव के सबसे निर्णायक क्षेत्रों में से एक बनती जा रही है।






















