Digha Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में दीघा विधानसभा सीट (संख्या 181) का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। पटना जिले और पटना लोकसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी विधानसभा सीट होने के कारण यहां का राजनीतिक समीकरण सीधे राजधानी की सियासत को प्रभावित करता है। यह सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई और 2010 में यहां पहला चुनाव हुआ। तब जदयू की उम्मीदवार पूनम देवी ने जीत हासिल की थी। लेकिन इसके बाद से सत्ता समीकरण लगातार बदलते रहे और 2015 से भाजपा ने इस सीट पर अपना वर्चस्व कायम किया है।
चुनावी इतिहास
2015 का चुनाव इस सीट के राजनीतिक इतिहास में अहम मोड़ साबित हुआ, जब भाजपा प्रत्याशी संजीव चौरसिया ने जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन को 30 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से शिकस्त दी। 2020 में एक बार फिर संजीव चौरसिया ने अपनी पकड़ मजबूत रखते हुए सीपीआई (एमएल) की उम्मीदवार शशि यादव को करीब 46 हजार वोटों के बड़े अंतर से हराया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार उन्हें 57.01% वोट मिले, जबकि शशि यादव को केवल 29.98% वोट हासिल हुए। यह अंतर दर्शाता है कि भाजपा का संगठन और वोट बैंक इस क्षेत्र में लगातार मजबूत हुआ है।
हालांकि, दीघा का जातीय गणित किसी भी दल के लिए चुनाव आसान नहीं बनाता। यहां यादव, राजपूत, कोइरी, भूमिहार, ब्राह्मण और कुर्मी वोटरों की संख्या निर्णायक भूमिका निभाती है। साथ ही महिला वोटरों की संख्या भी यहां पुरुष वोटरों से ज्यादा है, जो उम्मीदवारों के लिए बड़ी चुनौती और अवसर दोनों पेश करती है। 2020 के आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर कुल मतदाता चार लाख से अधिक हैं, जिनमें लगभग 2.35 लाख पुरुष और दो लाख से ज्यादा महिला मतदाता शामिल हैं।
जातीय समीकरण
दीघा विधानसभा सीट की राजनीति का दूसरा पहलू यह है कि यहां परंपरागत जातीय समीकरणों के साथ-साथ शहरी मुद्दों का भी बड़ा असर होता है। पटना की सबसे तेजी से विकसित हो रही बस्तियों में शामिल होने के कारण यहां बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे से जुड़े सवाल भी मतदाताओं की प्राथमिकता में रहते हैं। यही वजह है कि भाजपा को जहां संगठनात्मक ताकत और मोदी फैक्टर का फायदा मिलता रहा है, वहीं महागठबंधन इस सीट पर सामाजिक समीकरण साधकर चुनावी मैदान में उतारने की रणनीति बनाता है।
आगामी विधानसभा चुनाव में दीघा सीट पर मुकाबला और भी दिलचस्प होने की संभावना है। भाजपा अपने किले को बचाने की कोशिश करेगी, जबकि जदयू, राजद और वाम दल मिलकर भाजपा के गढ़ को चुनौती देंगे। यहां का हर चुनाव राजधानी पटना के राजनीतिक रुझान की झलक भी पेश करता है, इसलिए 2025 का विधानसभा चुनाव दीघा सीट पर न सिर्फ उम्मीदवारों बल्कि दलों की प्रतिष्ठा की लड़ाई साबित होगा।






















