Patna Sahib Vidhansabha 2025: पटना साहिब विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 184) बिहार की सबसे महत्वपूर्ण और वीआईपी सीटों में गिनी जाती है। पटना जिले की यह सीट न केवल ऐतिहासिक महत्व रखती है, बल्कि राज्य की सियासत की दिशा तय करने में भी खास भूमिका निभाती है। 1957 में जब पहली बार यहां चुनाव हुआ, तो कांग्रेस ने लगातार दो बार जीत दर्ज कर अपनी मजबूत शुरुआत की। हालांकि इसके बाद जनसंघ और फिर कांग्रेस के बीच मुकाबला चलता रहा। जनता पार्टी ने भी एक बार यहां कब्जा जमाया, लेकिन 1995 में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत हासिल कर जो सिलसिला शुरू किया, वह अब तक कायम है।
चुनावी इतिहास
इस सीट का नाम पहले पटना ईस्ट विधानसभा हुआ करता था। समय के साथ राजनीतिक बदलाव हुए, लेकिन एक स्थायी तथ्य यह रहा कि पटना साहिब की गिनती बिहार की सबसे हाई-प्रोफाइल सीटों में होती है।
पटना साहिब सीट का नाम आते ही सबसे पहले जिस नेता की छवि सामने आती है, वह है भाजपा के वरिष्ठ नेता और मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव। 1995 में पहली बार विधायक बनने वाले यादव ने लगातार 2000, फरवरी 2005, अक्टूबर 2005 और 2010 में जीत का परचम लहराया। हालांकि 2015 का चुनाव उनके लिए सबसे कठिन साबित हुआ, जब वे राजद उम्मीदवार संतोष मेहता से बेहद मामूली अंतर से आगे निकल पाए। उस चुनाव में नंदकिशोर यादव को 88,108 वोट मिले थे जबकि संतोष मेहता को लगभग 85,000 वोट।
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2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर अपनी पकड़ मजबूत साबित की। नंदकिशोर यादव ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीन सिंह को 18,300 वोटों के अंतर से हराकर लगातार सातवीं बार विजय हासिल की।
जातीय समीकरण
पटना साहिब विधानसभा सीट पर करीब साढ़े तीन लाख मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें 54 प्रतिशत पुरुष और 46 प्रतिशत महिला मतदाता शामिल हैं। इस सीट का जातीय समीकरण भी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। वैश्य समाज यहां की सबसे बड़ी ताकत है, जिनकी संख्या करीब 80,000 है। इसके बाद यादव समाज के लगभग 50,000 वोटर हैं, जो चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में अहम साबित होते हैं। यही कारण है कि पटना साहिब विधानसभा को सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति का बैरोमीटर कहा जाता है।
आगामी चुनावों में पटना साहिब विधानसभा का राजनीतिक समीकरण दिलचस्प होने वाला है। भाजपा जहां अपने पारंपरिक वोट बैंक और नंदकिशोर यादव के लंबे अनुभव पर भरोसा करेगी, वहीं विपक्ष सामाजिक समीकरण और एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर का सहारा लेकर चुनौती पेश करने की कोशिश करेगा। बिहार की इस सीट का महत्व यही है कि यहां का नतीजा अक्सर राज्य के राजनीतिक रुझानों का संकेतक माना जाता है।






















