बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भारतीय जनता पार्टी ने राजनीति के मंच पर एक बड़ा ‘पावर मूव’ कर डाला है। लंबे समय से नाराज चल रहे भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार और पूर्व लोकसभा प्रत्याशी पवन सिंह की बीजेपी में जोरदार वापसी की स्क्रिप्ट लगभग फाइनल हो चुकी है। इस वापसी का रास्ता तब साफ हुआ जब बीजेपी के कद्दावर रणनीतिकार विनोद तावड़े ने रालोमो अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को पवन सिंह की री-एंट्री के लिए मना लिया। दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद जो संदेश निकला, वह सिर्फ NDA के लिए राहत नहीं, बल्कि बिहार की सियासत में एक नई दिशा देने वाला माना जा रहा है।
पिछले लोकसभा चुनाव में पवन सिंह की काराकाट से अचानक उम्मीदवारी ने एनडीए के जातीय समीकरण को बुरी तरह झटका दिया था। इसका खामियाजा उपेंद्र कुशवाहा को हार के रूप में भुगतना पड़ा। इससे कुशवाहा समाज में असंतोष फैला, जिसके परिणामस्वरूप आरा और औरंगाबाद जैसी सीटों पर बीजेपी को शिकस्त झेलनी पड़ी। आरके सिंह और सुशील कुमार सिंह जैसे अनुभवी राजपूत चेहरों की हार ने पार्टी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि पवन सिंह और कुशवाहा जैसे नेताओं को एक मंच पर लाना अब समय की जरूरत है।
यही वजह रही कि 30 सितंबर को बीजेपी के रणनीतिक दिमाग विनोद तावड़े और संगठनात्मक समन्वयक ऋतुराज सिन्हा पवन सिंह को लेकर सीधे उपेंद्र कुशवाहा के आवास पहुंचे। बैठक में न केवल पुरानी कड़वाहियों पर पर्दा डाला गया, बल्कि भविष्य की साझा रणनीति पर भी मुहर लगाई गई। बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए तावड़े ने कहा कि पवन सिंह बीजेपी में थे, हैं और रहेंगे। इसका अर्थ सिर्फ एक वापसी नहीं, बल्कि चुनाव से पहले गठबंधन की ‘क्राइसिस मैनेजमेंट’ की परिपक्व मिसाल है।
बीजेपी का यह कदम सिर्फ एक अभिनेता की वापसी नहीं, बल्कि जातीय और सामाजिक समीकरणों को दुरुस्त करने की उस बड़ी रणनीति का हिस्सा है, जो 2025 के चुनाव में एनडीए को पूर्ण बहुमत दिलाने के लक्ष्य के साथ बनाई गई है। पवन सिंह की लोकप्रियता और युवाओं में पकड़, कुशवाहा के सामाजिक आधार और बीजेपी की संगठित मशीनरी – इस तिकड़ी की ताकत को अब NDA बड़े पैमाने पर भुनाना चाहता है।






















