Kargahar Vidhansabha 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले रोहतास जिले की करगहर विधानसभा सीट (संख्या 209) राजनीतिक हलचलों का केंद्र बन गई है। पूरी तरह ग्रामीण इलाका होने के बावजूद करगहर की सियासत का असर अब पूरे सासाराम संसदीय क्षेत्र तक फैल गया है। यहां का जातीय संतुलन, पिछले चुनावों का इतिहास और इस बार प्रशांत किशोर (PK) की चुनावी घोषणा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।
चुनावी इतिहास
करगहर, सासाराम अनुमंडल का एक प्रखंड है जो पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र है और इसमें कोई बड़ा शहरी केंद्र नहीं है। यह सीट सासाराम लोकसभा क्षेत्र (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित) के अंतर्गत आती है। परिसीमन आयोग की सिफारिश के बाद 2008 में विक्रमगंज विधानसभा को खत्म कर करगहर को नया निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया। 2010 में यहां पहली बार चुनाव हुआ और तभी से यह सीट राजनीतिक रूप से चर्चित रही है।
Chenari Vidhan Sabha 2025: समाजवादी परंपरा में बदलता समीकरण, 2025 में त्रिकोणीय मुकाबले की आहट
2010 के पहले चुनाव में जदयू के रामधनी सिंह ने लोजपा के शिवशंकर को हराया और जदयू ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। 2015 में जदयू के बशिष्ठ सिंह ने रालोसपा के बीरेंद्र कुमार सिंह को 12,907 वोटों से हराकर सीट पर दोबारा कब्जा जमाया। लेकिन 2020 में कांग्रेस ने मैदान पलट दिया — संतोष कुमार मिश्रा ने बशिष्ठ सिंह को कड़े मुकाबले में मात देकर कांग्रेस को नई उम्मीद दी।
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव ने एक नया सियासी संकेत दिया है। करगहर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को 3,035 वोटों की बढ़त मिली, जो बताता है कि मतदाताओं के रुझान में बड़ा बदलाव संभव है। इससे यह सीट अब 2025 के चुनाव में भाजपा, कांग्रेस, जदयू और प्रशांत किशोर के लिए अहम रणभूमि बन गई है।
जातीय समीकरण
करगहर विधानसभा का राजनीतिक गणित पूरी तरह जातीय संतुलन पर आधारित है। यहां ब्राह्मण, कुर्मी और रविदास समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनके अलावा वैश्य, कुशवाहा और यादव मतदाता भी संतुलन बनाए रखते हैं। स्थानीय राजनीतिक जानकारों के अनुसार, करगहर सीट ब्राह्मण बहुल है, जिसके कारण 2020 में कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी संतोष मिश्रा को फायदा मिला था।
अब इस समीकरण को चुनौती देने मैदान में हैं प्रशांत किशोर, जो खुद ब्राह्मण समुदाय से हैं और “जनसुराज अभियान” के जरिए क्षेत्र में अपनी पैठ मजबूत कर रहे हैं। उनके मैदान में आने से कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लग सकती है, वहीं जदयू और भाजपा भी अपने-अपने आधार वोट को बचाने में जुटी हैं।






















