प्रो. रणबीर नंदन. साल 2025 भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ने जा रहा है। यह वह वर्ष है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी शताब्दी मना रहा है। सौ वर्षों की यह यात्रा केवल एक संगठन की नहीं, बल्कि राष्ट्र-चेतना के पुनर्जागरण की कहानी है। 1925 में डॉ. हेडगेवार ने जब नागपुर में संघ की स्थापना की, तब ही यह स्पष्ट हो गया था कि यह आंदोलन आने वाले समय में भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन की धारा को गहराई से प्रभावित करेगा।
डॉ. हेडगेवार का सपना था एक ऐसे भारत का निर्माण, जो अपनी अस्मिता, संस्कृति और नैतिक मूल्यों पर गर्व करे। ब्रिटिश शासन के दौर में जब देश पर गुलामी की मानसिकता का जाल था, तब संघ ने आत्मसम्मान की बात की। ‘संघ’ शब्द ही इस संगठन का सार है समरसता, अनुशासन और संगठन। कोई पद नहीं, कोई पदलोलुपता नहीं; बस ‘नर से नारायण’ और ‘राष्ट्र प्रथम’ का भाव।
संघ की शाखाएं केवल व्यायाम या प्रार्थना के लिए नहीं थीं। वे चरित्र निर्माण की प्रयोगशालाएं थीं, जहां अनुशासन, देशभक्ति और सेवा का संस्कार पीढ़ियों में प्रवाहित हुआ। यही संस्कार आगे चलकर समाज के शिक्षा, राजनीति, ग्राम विकास, विज्ञान, कला और संस्कृति में प्रेरणा के स्तंभ बने।
संघ का विजन हमेशा व्यापक रहा है। यह किसी संकीर्ण विचारधारा का संगठन नहीं, बल्कि ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को जीने वाला आंदोलन है। इसका सपना है ऐसा भारत—जहां जाति, भाषा, क्षेत्र या पंथ के आधार पर विभाजन न हो, बल्कि सभी में भारतीयता की भावना एक सूत्र में पिरोई जाए।
संघ ने हमेशा कहा है कि हिंदुत्व कोई धर्म नहीं, जीवन पद्धति है। यह वह दृष्टि है जो भारत को केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवंत सभ्यता के रूप में देखती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सबसे बड़ा योगदान समाज के मौन को मुखर करना है। जब-जब देश संकट में पड़ा, संघ स्वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में रहे चाहे 1947 का विभाजन हो, 1962 का चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध हों, या फिर 2013 की उत्तराखंड त्रासदी।
आज संघ परिवार के हजारों संगठन हैं- सेवा भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, विद्या भारती, राष्ट्रसेवा समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद- जो हर क्षेत्र में राष्ट्र सेवा के कार्य कर रहे हैं।
बिहार में संघ की जड़ें और प्रभाव
बिहार में संघ की जड़ें 1930 के दशक में पड़ीं, जब कुछ युवाओं ने नागपुर से प्रेरणा लेकर पटना में पहली शाखा स्थापित की। यहां संघ ने केवल शाखाएं नहीं लगाईं, बल्कि समाज के अंदर संगठन की चेतना जगाई। बिहार के स्वयंसेवक हमेशा से देश के हर आंदोलन में अग्रणी रहे। 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से लेकर आपातकाल के विरोध तक, संघ के कार्यकर्ताओं ने लोकतंत्र की रक्षा में अहम भूमिका निभाई।
संघ ने बिहार में सेवा के क्षेत्र में जो काम किया, वह आज भी प्रेरणा देता है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में राहत कार्य, गांवों में शिक्षा केंद्रों की स्थापना, दलित और वंचित समुदायों के बीच समरसता अभियान, इन सबने बिहार में समाज को एक नई दिशा दी। सेवा भारती, विद्या भारती और वनवासी कल्याण केंद्र जैसे संगठन बिहार के हर जिले में सक्रिय हैं। सीमांचल और मिथिलांचल से लेकर मगध और भोजपुर तक, संघ के कार्यकर्ता बिना प्रचार के शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्राम विकास में जीवन खपा रहे हैं।
संघ की सबसे बड़ी शक्ति है- उसका स्वयंसेवक। संघ किसी व्यक्ति की पूजा नहीं करता; वह कार्य की पूजा करता है। शाखा में आने वाला प्रत्येक स्वयंसेवक केवल देशभक्ति नहीं सीखता, बल्कि जिम्मेदारी निभाने की कला भी सीखता है। बिहार में संघ के अनेक स्वयंसेवक आगे चलकर शिक्षा, प्रशासन, रक्षा और राजनीति में गए, लेकिन जहां भी गए, वहां राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा। यही संघ का प्रशिक्षण है- ‘जो भी करो, राष्ट्र के लिए करो।’
आज भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। आर्थिक, सांस्कृतिक और वैश्विक स्तर पर भारत आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। इस नए भारत के पीछे वह अदृश्य अनुशासन और कार्यसंस्कृति है, जिसकी जड़ें संघ के सौ वर्षों के परिश्रम में हैं। संघ ने न केवल विचार दिया, बल्कि नेतृत्व भी तैयार किया। समाज में एकता और स्वावलंबन की भावना जगाई। जब पूरा देश पश्चिमी जीवनशैली की ओर झुक रहा था, संघ ने भारतीय परंपराओं में आधुनिकता का संतुलन खोजा।
बिहार का योगदान: सेवा और समर्पण की भूमि
बिहार की धरती ने हमेशा समाज परिवर्तन के आंदोलन दिए हैं- चाहे वह बुद्ध का करुणा संदेश हो या जयप्रकाश नारायण का सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन। यही भावना संघ के कार्य में भी दिखती है। बिहार के स्वयंसेवकों ने शिक्षा, चिकित्सा और स्वदेशी उद्योगों के क्षेत्र में संघ की सोच को धरातल पर उतारा है। गांवों में नशामुक्ति अभियान, स्वच्छता अभियान, पर्यावरण संरक्षण और गो-सेवा के कार्यों ने हजारों लोगों का जीवन बदला है। स्वयंसेवक सेवा परमो धर्मः के सिद्धांत पर चलते हैं। वे किसी राजनीतिक पहचान से ऊपर उठकर राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हैं।
शताब्दी का संदेश: नया भारत, संगठित भारत
सौ वर्षों का यह पर्व केवल उत्सव नहीं, आत्ममंथन का अवसर भी है। आने वाले वर्षों में संघ का लक्ष्य है कि हर गाँव में संगठन की चेतना पहुँचे, हर नागरिक में कर्तव्यबोध जागे, और भारत ‘विश्वगुरु’ के रूप में पुनः प्रतिष्ठित हो। संघ कहता है कि हमारा कार्य किसी व्यक्ति, जाति या दल के लिए नहीं, पूरे राष्ट्र के लिए है। यही भावना आने वाले भारत की रीढ़ बनेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष भारतीयता के अमर गीत हैं अनुशासन का, सेवा का, समरसता का। जब इतिहास इस युग को देखेगा, तो कहेगा कि इस संगठन ने भारत को केवल खड़ा नहीं किया, बल्कि उसे आत्मबल और आत्मगौरव से भर दिया। बिहार की धरती इस यात्रा में गर्व से कह सकती है कि हम भी इस महान पुनर्जागरण के सहभागी हैं।
















