Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का ऐलान होते ही सियासी हलचल तेज हो गई है। 243 सीटों वाली विधानसभा के लिए दो चरणों में मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को तय की गई है। एनडीए की ओर से बीजेपी-जेडीयू गठबंधन सत्ता बचाने की कोशिश में है, जबकि आरजेडी की अगुवाई वाला महागठबंधन उसे चुनौती देने के लिए मैदान में है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी इस चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन इन सबके बीच असली फोकस बीजेपी पर है, जो कई मोर्चों पर एक साथ संघर्ष कर रही है। अगर वह इन चुनौतियों को साध पाती है, तो न सिर्फ बिहार बल्कि दिल्ली तक इसका असर महसूस किया जाएगा।
पहली चुनौती: सीट बंटवारे की गुत्थी और जेडीयू की नाराजगी
एनडीए गठबंधन में बीजेपी के साथ जेडीयू, एलजेपी (राम विलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा हैं। हालांकि, सीटों के तालमेल को लेकर अंदरूनी असंतोष साफ झलक रहा है। बीजेपी लगभग 100 सीटों पर लड़ने की तैयारी में है, लेकिन सहयोगियों को संतुष्ट करना उसके लिए आसान नहीं है। जेडीयू पहले से ही इस बात पर दबाव बना रही है कि उसे सम्मानजनक सीटें दी जाएं। अगर बीजेपी अपने साथियों की महत्वाकांक्षाओं को संभाल नहीं पाती, तो यह अंदरूनी असंतोष चुनावी परिणामों पर भारी पड़ सकता है।
दूसरी चुनौती: नीतीश कुमार पर निर्भरता और नेतृत्व का संकट
बिहार बीजेपी के पास आज भी कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो नीतीश कुमार का विकल्प बन सके। पार्टी की पूरी रणनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर केंद्रित है। नीतीश कुमार की उम्र और सेहत पर उठ रहे सवालों के बावजूद बीजेपी उनके सहारे ही चुनाव मैदान में उतर रही है। लेकिन यह सहारा ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी बन सकता है। अगर नीतीश के प्रति जनता में असंतोष बढ़ा तो उसका सीधा नुकसान बीजेपी को होगा। साथ ही, केंद्र में जेडीयू के 12 सांसदों पर निर्भरता ने बीजेपी को राजनीतिक रूप से सीमित कर दिया है।
तीसरी चुनौती: चिराग पासवान की महत्वाकांक्षा और सीटों की खींचतान
लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के प्रमुख चिराग पासवान अपने आपको मोदी का हनुमान कहते हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। लोकसभा चुनाव 2024 में शानदार प्रदर्शन के बाद चिराग अब विधानसभा में 40 सीटों की मांग कर रहे हैं, जबकि बीजेपी उन्हें 25 से 30 सीटों का ऑफर दे रही है। एलजेपी की 2020 में की गई बगावत के चलते जेडीयू का नुकसान हुआ था, इसलिए चिराग को खुश रखना इस बार भी बीजेपी के लिए कठिन काम है। अगर यह टकराव बढ़ा, तो इसका सीधा असर एनडीए की एकजुटता पर पड़ेगा।
चौथी चुनौती: प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान
चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भले ही नई है, लेकिन उसका असर खासकर युवाओं और ग्रामीण मतदाताओं के बीच दिख रहा है। पीके का अभियान बिहार की जमीनी राजनीति में एक “बदलाव की लहर” पैदा कर रहा है। हालांकि, वे बड़े स्तर पर सीटें जीतें या न जीतें, लेकिन हर सीट पर वोट कटवा बनने की संभावना बीजेपी के लिए सिरदर्द बन सकती है। अगर जन सुराज ने एनडीए वोट बैंक में सेंध लगाई, तो कई सीटों पर नतीजे अप्रत्याशित हो सकते हैं।
पांचवीं चुनौती: लालू-तेजस्वी का मजबूत MY समीकरण
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती आज भी लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की आरजेडी ही है। आरजेडी अब भी यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण पर मजबूती से टिकी हुई है। 2020 में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और आज भी उसका जनाधार बरकरार है। कांग्रेस और वाम दलों का वोट भी उसी की झोली में जाता है। सीमांचल में ओवैसी और प्रशांत किशोर की कोशिशें आरजेडी के वोट बैंक को बांट सकती हैं, लेकिन अगर यह समीकरण जस का तस रहा तो बीजेपी को मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं। यह वही समीकरण है जिसने लालू यादव को तीन दशकों तक बिहार की सत्ता में निर्णायक बनाए रखा।






















